गुरुवार, जुलाई 31







"दिल"
टूट रही है साँसे ,बैठा जा रहा है दिल,
जाने किस गुनाह की सजा पा रहा है दिल,
चुभता था कभी नश्तर ,ये सीने में लेकिन ,
आज किसी फूल सा मुरझा रहा है दिल .
कम पड़ रहा था घर उस मेहमान के लिए ,
गम जिसके लाखों अब उठा रहा है दिल...
नस नस में लहू बनके बस गई थी तुम,
आंसू लहू के बेवफा बहा रहा है दिल .
शायद तेरे कहने में ही कोई कमी 'अभिन्न'
दर्द कुछ है , बात कुछ बना रहा है दिल

रविवार, जुलाई 27

बदला है लम्हा लम्हा



बदला है लम्हा लम्हा मेरा नाम लोगों ने।
साजिस रची ये मिलके तमाम लोगों ने ।
आँख में पानी कहा पलक पे मोती,
गिरा रुखसार पे, आंसू दिया नाम लोगों ने ।
दर्दे दिल की दवा को मस्ती कहा जाम कहा,
कहके शराब कर दिया बदनाम लोगों ने।
बरस के नालों में गिरा , नाले मिले नदी में
पड़े हज़रत के कदम तो किया सजदा -सलाम लोगो ने ।
शर्म को पानी पानी, बरफ बेशर्मी को कहा ,
शबनम कहा सवेरे,धुंध कहा शाम लोगों ने ।

दिल में रहने वाली गम


दिल में रहने वाली गम जब जवां होगी,
उससे ज्यादा खुबसूरत और बला क्या होगी ,

निकल पड़ते है अश्क जिस दर्द के होने से,
कल वही गम ही मेरे हर गम की दवा होगी ।

आज रो पड़ता हूँ हर शरारत पे तेरी
कल हसूंगा जिस पर वो तेरी अदा होगी।

हो जायेंगे एक हम आग की गवाही में
मेरे सर पे सेहरा होगा तेरे हाथों पे हिना होंगी।

फिर ज़माने में कहीं भी हम नज़र न आयेंगे
गैर बनके ये साँसे जब लापता होंगी ।

शनिवार, जुलाई 19







"उन्मुक्त पंछी"

उन्मुक्त पंछी होता
करता विचरण ....
बेरोक टोक आता जाता
उड़ता फिरता यंहा वंहा ......
क्यूँ बना दिया मुझको

"इंसान" ...

तड़प रहा हूँ
बन्धनों में जकडा हुआ
एक साँस भी अपनी
इच्छा की नही ले पाते हम
या फिर अगर बनाना ही था

"इंसान"
क्यों न मुझे बच्चा ही रहने दिया
छीन ली क्यूँ मेरी मासूमियत
क्यूँ दे दी मुझे ये
ज़माने भर की
बददुआ...

मंगलवार, जुलाई 15

"मेरा बचपन"









कोई खिलौना सा टूट गया है मेरा बचपन
टूटे खिलोने सा कहीं छुट गया है मेरा बचपन
कितना खुश था कितना सुख था बचपन की उन बैटन में
समय का जालिम चेहरा आकर लूट गया मेरा बचपन
हंसता खिलता सबसे मिलता ,एक जिद्दी बच्चे जैसा
जाने किस की नज़र लगी और रूठ गया मेरा बचपन
गुल्ली डंडा ,गोली कंचा ,डोर पतंग सी उमंग लिए
रंग बिरंगे गुब्बारों सा था ,क्यूँ फूट गया मेरा बचपन

शनिवार, जुलाई 12






"मोह्हबत करते है"

वो आकर अगर ख्वाबो में ही मोह्हबत करते है ,
अपनी नींदों की हम भी उन पर शहादत करते है
खो जायें कहीं , गहरी नींद में सो जायें कहीं
इस दुनिया के उजालों से चलो बगावत करते है
क्यों नही आता वो सरे -आम मिलने मुझसे
चोर है उसके मन में चलो शिकायत करते है
खवाबो की सेज उसने क्यों चुनी है मेरी खातिर
इस बार की मोहब्बत चलो हकीकत करते है
सोने भी नही देता है अब रात रात भर वो ,
कभी वो हमसे कभी हम उनसे शिकयत करते है
ना लिखो कभी प्यार का कलाम तुम दिलबर
जो दिल में छुपा है तेरे सनम दरियाफ्त करते है
वो आकर अगर ख्वाबो में ही मोह्हबत करते है ,
अपनी नींदों की हम भी उन पर शहादत करते है

शुक्रवार, जुलाई 11



"साथ देदे"

मुझको भी दोस्ती का कोई इनाम देदे
हंस के ले लूँगा गम तमाम देदे

रह न जाए मेरी आँख का कोना सुखा
झडी न सही चाँद लम्हों की बरसात देदे

देखता रहू तुम्हे और इस की तड़पन को
कोई तो सिसकती बिलखती मुझे एक रात देदे

देखो न मै कैसे रो रहा हू फुट कर
रोक ले या मेरा साथ देदे

मंगलवार, जुलाई 8


"तुम चाहत जैसी"

वीराने में एक आहट जैसी,
कौन हो तुम चाहत जैसी ,
योवन की कोई हरारत जैसी,
बचपन की कोई शरारत जैसी,
करार छीन लेती हो फिर भी,
लगती दिल को राहत जैसी,
तौबा कर के फिर आता हूँ,
तेरी गली नशे की आदत जैसी,
हमसे पूछो जिंदगी क्या है,
जवानी में आई कयामत जैसी

सोमवार, जुलाई 7

,





"जीवन मेरा"
जान हमारी आँगन तेरे,
करी हवाले साजन तेरे
मिलेगी सुर को सम्पूर्णता
बजे जो पायल कंगन तेरे
रहूँ समाया हर पल -हर दम
बन कर दिल में धड़कन तेरे
आएगा तू ,है मुझे भरोसा
रस्ते देखूं मै विरहन तेरे
साकार करो अब जीवन मेरा
आते मुझे अब स्वप्न तेरे


'तेरा जादू"
दो आँखों में कितने जादू,
जीना मुश्किल करते जादू,
हो जाता हूँ वश में तेरे,
जब करते हो अपने जादू,
जागु तो देखू तेरे ,
सोऊ तो बनते सपने जादू,
इल्सिम करती आवाज मोहिनी,
लिबास तुमने पहने जादू,
बातें जादू ,यादें जादू ,
चूडी ,कंगन , गहने जादू



शनिवार, जुलाई 5

"???"







"???"




मेरी आत्मा की बंजर भूमि पर,

कठोरता का हलचला कर ,

तुमने ये कैसा बीज बो दिया?

क्या उगाना चाहते हो

मुझमे तुम,

ये कौन अंगडाई सी लेता है,

मेरी गहराइयों मे,

कौन खेल सा करता है ,

मेरी परछाइयों से ,

क्या अंकुरित हो रहा है इन अंधेरों से...?

क्या उग रहा है सूर्य कोई पूर्व से ???


शुक्रवार, जुलाई 4









"कहाँ"
ज़मीन कहां ,आकाश कहां
आते हैं कब पास कहां ???
उठ जात है हज़ार उँगलियाँ ,
मेरी खुशी किसी को रास कहाँ???
पत्थर पे अक्स फूल की जो उभार दे,
ऐसे अब वो संगतराश कहाँ???
पतझर ही मिले जब भी मिले,
मेरे हिस्से के मधुमास कहाँ???
रुक जाओ के तफ्शीस कर लूँ ,
दिल कहाँ धड़कन कहाँ ,मेरी साँस कहाँ???

गुरुवार, जुलाई 3

"यकीन"




तुम्हें यकीन आए तो बताना पड़ा है,
ये सच है तभी तो छुपाना पड़ा है..
तेरे सिवा ये सच कौन सुनेगा ,
तुमसे मुडा तो देखा की ज़माना पड़ा है...
सिवा अश्क -ओ -गम के क्या देते है रिश्ते,
तुम मिले तो मुझको मुस्कराना पड़ा है....
मिलना था अपने ही वजूद से 'अभिन्न ' को,
सब भुलाके पास तेरे आना पड़ा है.....
मुक्कमल नही है ये ग़ज़ल कोई पुरा करे इसको,
टूटे हुए है जाम , खाली मयखाना पड़ा है..........




मंगलवार, जुलाई 1





"मेरे मीत"

मेरी ग़ज़ल और मेरे गीत,

तेरे लिए है मेरे मीत ...

तेरा जिक्र और तारीफ तेरी,

तुमसे फरोजा मेरी प्रीत....

चलो बगावत कर ले दोनों,

और निभाएं प्रेम की रीत..

हारेगा जिस रोज जमाना,

होगी तेरी मेरी जीत॥

जी ले लम्हा लम्हा कर के,

उम्र न जाए सारी बीत