आँख भर आंसुओं से नहीं ये आग बुझने वाली मोम की बनी है ये दुनिया जो जलने वाली उठे सवालों की गर होती परवाह किसी को तो बात करता हर शख्स संभलने वाली जल रही किसी की ख़ुशी अरमान किसी के तेरी सोच, तेरी ख़ुशी से नहीं ये दुनिया चलने वाली अमन का पंछी उड़ कर कहाँ जाएगा इस से बच के पर उसके भी जला देगी ये आग दहकने वाली हमारी ही हवस से निकली चिंगारियों का असर हम ही न बदले जब तक ये भी न बदलने वाली
चाँद नही कोई पूनम जैसा यार नही कोई हमदम जैसा बदले है वो बात बात में बदले नही पर मौसम जैसा नही जुदा हो कोशिश कर लों रिश्ता ये सुर सरगम जैसा झुको तो लदे दरख्त जैसे लहराओ तो किसी परचम जैसा चुभो तो किसी नश्तर से जयादा लगो तो बस एक मरहम जैसा