मंगलवार, अगस्त 19

मोहब्बत


क्या हुआ अगर ज़मीनी दूरी है,
दिल को तो मोहब्बत उनसे पुरी है ,
दिखाई कैसे देगी धड़कन ,
"और चाहत "
ये तो ऐसे जैसे
मृग में छुपी कस्तूरी है

रविवार, अगस्त 3

ये आग


आँख भर आंसुओं से नहीं ये आग बुझने वाली
मोम की बनी है ये दुनिया जो जलने वाली
उठे सवालों की गर होती परवाह किसी को
तो बात करता हर शख्स संभलने वाली
जल रही किसी की ख़ुशी अरमान किसी के
तेरी सोच, तेरी ख़ुशी से नहीं ये दुनिया चलने वाली
अमन का पंछी उड़ कर कहाँ जाएगा इस से बच के
पर उसके भी जला देगी ये आग दहकने वाली
हमारी ही हवस से निकली चिंगारियों का असर
हम ही न बदले जब तक ये भी न बदलने वाली

कतरा कतरा -लम्हा लम्हा


कतरा कतरा एहसास में तुम।
लम्हा लम्हा हर सांस में तुम ।

संवर जाये यूँ जीवन सारा
रहो अगर मेरे पास में तुम ।

राहत कितनी है इस चाहत में
बसे हो मेरे विश्वास में तुम ।

एक लम्हे से संवरे क्या जीवन ?
जनम जन्म की प्यास में तुम

तेरे बिन क्या पास 'अभिन्न' के
हर आम में तुम हर खास में तुम

शनिवार, अगस्त 2

चाँद नही कोई पूनम जैसा


चाँद नही कोई पूनम जैसा
यार नही कोई हमदम जैसा
बदले है वो बात बात में
बदले नही पर मौसम जैसा
नही जुदा हो कोशिश कर लों
रिश्ता ये सुर सरगम जैसा
झुको तो लदे दरख्त जैसे
लहराओ तो किसी परचम जैसा
चुभो तो किसी नश्तर से जयादा
लगो तो बस एक मरहम जैसा