शनिवार, नवंबर 21

मैंने देखा नही खुदा को

क्यूं रहता वो आजकल बड़ी कसमकश में है
मै कायल हूँ जिसका दिल जिनके बस में है

मैंने देखा नही खुदा को आज तक ये सच है ,
मेरा खुदा तो मेरे सनम सिर्फ़ तेरे दरश में है

शिकवा किया था बिन मिले जो आए थे एक बार
अब इल्तजा पे भी तगाफुल क्यूँ उस शख्श में है

यही सोच है दिन रात क्या वजह इस बेरुखी में
क्या दिल के बुरे है हम या कोई खोट नक्श में है

हटा दो तमाम परदे रूह रोशन हो जाने दो अब
पुर्निम का था ये चाँद जो अब क़ैद अमावस में है

हमें ख्वाहिशें मिटा देंगी तुम्हे नाराज़गी तुम्हारी
मन मुटाव सभी मिटा दे अभी बात आपस में है

शनिवार, अक्तूबर 3

सब नजारों को देख लें


"सब नजारों को देख लें "

भुला के दौर-ए-गम, चलो हम बहारों को देख लें

दरवाजे है बंद तो क्यूँ न उनकी दीवारों को देख लें

मौसम भी खुशगवार है आसमा भी साफ़ साफ़,

फुर्सत है चलो आज सब नजारों को देख लें

तकदीर जो बनादे या रख दे बिगाड़ कर,

खुद कैसे टूट जाते हैं उन तारों को देख लें

बँट जाता है आसमान भी क्या ज़मीं के साथ साथ

उन सरहदों को खोज ले उन दरारों को देख लें

खिलते हुए,हिलते हुए ओर टिमटिमाते हुए भी

हर उम्रके हर शौक के सितारों को देख लें

चांदनी के दरिया में डूब जाएँ आज रात

लेते है कैसे आगोश में किनारों को देख लें

गुरुवार, अक्तूबर 1

साँसे जब लापता होंगी

दिल में बसी तमन्ना ये जब जवां होगी,
उससे ज्यादा खूबसूरत चीज क्या होगी

निकल पड़ते हैं अश्क इस दर्द के होने से
कल मेरी गम ही मेरे गम की दवा होगी

आज रो पड़ता हूँ मै हर शरारत पे तेरी
कल हसूंगा जिसपे वो तेरी ही अदा होगी

हो जायेंगे एक हम दोनों आग की गवाही से
सर पे मेरे सेहरा ओर तेरे हाथों पे हिना होगी

फ़िर जमाने में कहीं भी हम नजर न आयेंगे,
अजनबी बन के ये साँसे जब लापता होंगी

शुक्रवार, सितंबर 11

बहती हो तुम

"बहती हो तुम"

अंधेरों में लिपटी रौशनी हो तुम ,
मुझे लगता है की जिंदगी हो तुम.

जमुना सा वेग तुममे ,है गंगा सी पावनता ,
फिर आंसुओं सी क्यो सदा बहती हो तुम.

बसा सकती हो जब खुशी की वादियाँ,
क्यों बस्तियों में ग़मों की रहती हो तुम.

मुरझा जाती है मेरी दुनिया तेरे सिसकने भर से,
महक जाती है कायनात जब चहकती हो तुम.

जाती हो कहां ,अब तक न जान पाये ,
कभी जमीन तो कभी आसमान से उतरती हो तुम



शुक्रवार, जुलाई 31

मै जा रहा हूँ,जिन्दगी

जिंदगी तेरी खामोशी हमसे सही न जायेगी
अब दास्तान दर्द की हमसे कही न जायेगी

बेघर को देके आसरा क्यूँ एहसान किया था ?
मेहमान की तरह इतना सम्मान किया था ?

तेरा घर, तेरी गली, तेरा शहर छोड़ कर
मैं जा रहा हूँ आज सारे बंधन तोड़ कर

मेरी वफ़ा पे शायद तुमको यकीं न आएगा
तुमको भी हमसे बेवफा कहा न जाएगा

शुक्रवार, जुलाई 17

हम चाहते रहे तुम भूलाते रहे हो .


हमे खो देने का डर जताते रहे हो ।
पाने से क्यों हमेशा कतराते रहे हो ।

दिल ही तो था, तेरे क़दमों के नीचे,
जिसे ठोकर हर कदम लगाते रहे हो ।

कोशिश रही हम बात करे खुलकर
खामोशी तुम लबों पर सजाते रहे हो

चाहत भरे दिन थे जाने कहाँ छूटे ?
हम चाहते रहे तुम भुलाते रहे हो ।

गुनाह हुआ हमसे हमें ही नही मालूम,
सजा लम्हा लम्हा हमें दिलाते रहे हो ।

छोड़ आए थे कहाँ ,खोजते हो किस जगह ?
बेवफा होकर भी कैसे प्यार जताते रहे हो ।

बंधता गया राम सीमाओं में हर बार मै
सीता बन, धरा में तुम समाते रहे हो ।

रविवार, जुलाई 5

इरफान हुआ मुझको


मिले तुम की लगा जैसे सब से जुदा हो गया /
तेरा प्यार दर्द हो गया, यही दर्द दवा हो गया /

तेरी चाहत की ही सब मेहरबानियाँ है ये की,
कतरा था मै कतरे से कब का दरिया हो गया /

इरफान हुआ मुझको इक नई रौशनी का जब
ये वजूद मेरा तेरी बाँहों के दरमियाँ हो गया /

दे दिया इन्साफ उसने प्यार की दरखास्त पर
मुझेसिला मिल गया दुनिया का इफ्लाह हो गया /

नक्शा दो जहाँ का देखो, बदल डाला इस इश्क ने
इसमें खुदा इन्सां हो गया ,इन्सां खुदा हो गया /

तेरे आने से ये खाक दिल भी गुलिस्तान हो गया
सज संवर गई ज़िन्दगी अब खौफ हवा हो गया /

एक पत्थर के टुकड़े को,कीमती याकूत बना दिया
तुमने छुआ प्यार से तो, मै क्या से क्या हो गया /
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याकूत =हीरा
इरफान = ज्ञान
इफ्लाह = भला

रविवार, जून 28

जल नही तो जल रहे हैं



जल नहीं है तो जल रहे है
ये मौसम हमको तल रहे है

तप रही आग सी सारी धरती
आसमान तो जैसे पिघल रहे है

आती है बिजली जाने के लिए
पंखे तो हाथ के ही चल रहे है

कतार मोहल्ला हो गया सारा
नखरे में नुक्कड़ के नल रहे है

आते नहीं क्यूँ मेघदूत बन कर
अब के शायद वो भी टल रहे है


शनिवार, जून 20

मुझे तुम मिलो ऐ अजनबी


लफ्जों के बियाबाँ में
उमड़ते हुए कारवां में
तन्हाईयों के दरमियाँ में
मुझे तुम मिलो ऐ अजनबी
एक दोस्त हमदम की तरह ..........

ना बेवफा जिन्दगी के जैसे
ना रंग बदलते आदमी के जैसे
ना आ के जाने वाली खुशी के जैसे
मुझे तुम मिलो ऐ अजनबी
सदा साथ रहते गम की तरह .............

जहाँ तुम रहो वो देश मिले
निरंतर तेरे संदेश मिले
मुझे संग तेरा विशेष मिले
मुझे तुम मिलो ऐ अजनबी
खुदा के करम की तरह ..............

तंग करने के सौ तरीके लिए हो
अदब के कितने सलीके लिए हो
हुनर सभी जिंदगी के लिए हो
मुझे तुम मिलो ऐ अजनबी
जख्म पर मरहम की तरह .................

मंगलवार, मई 5

अब आरजू सी रह गई


मेरे आंसुओं का क़र्ज़ है,तेरा फ़र्ज़ है अदा करो.


कोई दिल जब दुखाये तेरा,याद कर लिया करो


जब भी डरा तेरे लिए डरा यु ही बेवफा भी हो गया


है इसी में अब वफ़ा तेरी,ख़ुद से भी वफ़ा करो


मेरी आबरू थी तू कभी ,अब आरजू सी रह गई


कभी भूल से भुला न दू ,बन के ख्वाब मिला करो


तू चाँद मै ज़मीन हूँ, कम होंगे कभी न फासले


कब कहा मेरे साथ चल, मै रुकू तो तुम रुका करो


मंजिल मिले तो रुके सफर,चले तो चले जिंदगी


ये सिलसिला रहे ताजिंदगी,ना रुके ऐसी दुआ करो




रविवार, अप्रैल 19

जी लो मुस्करा के


खिलेंगे,टूटेंगे,मुरझा कर झड़ जायेंगे,
ये फूल चन्द रोज में फीके पड़ जायेंगे,

कायम रहेगा इनका लेकिन ये मशवरा,
एक पल ही जी लो लेकिन मुस्करा के जरा ,

बिखेर दो खुशबू जहाँ भी मौजूद हो,
फूलों की तरह आदमी का भी वजूद हो

फूलों से कुछ जीना सीख ले आदमी

हंस के गम पीना सीख ले आदमी

शनिवार, मार्च 14

साँस

एक साँस ले चुका...

एक साँस बाकी है....

दो सांसों के बीच मैं

अटका हुआ अस्तित्व मेरा

मै मुर्दा भी नही ..................

अभी दूसरी साँस लेनी बाकी है

मै जीवन और मृत्यु के बीच

फंसी एक आत्मा हूँ

जिसने कभी मोक्ष नही चाहा

मंगलवार, मार्च 10

उमंगों के रंग




रंगों का आया है सुंदर त्यौहार
होली मनालो मुहब्बत से यार
रहे न वीरान ये हमारी धरा है जो
हरियाली से इसका करदो श्रींगार


नज़र न लगे इस अपने वतन को
तिरंगे फहरादों अन्तरिक्ष के पार

छू लो के रोशन हो जाए ये जीवन
मिट जाए मन के सभी अन्धकार

उस रंग से रंग दो जो जाए कभी न
तुम क्या कहोगे, उसे कहते है प्यार

रंगों का आया है पावन त्यौहार
उमंगों से इसको महका दो यार




शुक्रवार, फ़रवरी 27

खामोश हवा

बड़े बेताब है अब्र ,बड़ी खामोश हवा है
कोई बताये, भला इन्हे हुआ क्या है ?
सब्जोगुल का चेहरा मुरझाया सा लगा ,
किसी काँटों भरे हाथ ने छुआ क्या है ?
धुआं नही तो, फिर ये गुबार सा कैसा ?
उस और जो उठा , बता वो उठा क्या है ?
मुक़र्रर सजाये मौत है रकीबी के लिए,
बता तेरे मुल्क में ,इश्क की सज़ा क्या है ?
झुका दिया सर ,हर दरो दीवार पे हमने
न देखा की राम क्या-और खुदा क्या है ?

शुक्रवार, फ़रवरी 20

मुहब्बत का मशवरा

प्यार भी उनसे बहुत और फासले बहुत
आँख में आंसू मगर दिल में होंसले बहुत
संभल कर रहना जरा कांच की तरह
होतें है तेरे शहर में सुना हादसे बहुत
मिल कर जुदा होना जुदा होके फिर मिलना
प्यार में आते है अक्सर ऐसे सिलसिले बहुत
तेरे प्यार की इक तन्हाई पाने के लिए
छोड़ आया हूँ पीछे अपने महफिलें बहुत
मुहब्बत न करो हमसे यूँ टूट कर अभिन्न
आती है इसकी राह में सदा मुश्किलें बहुत

गुरुवार, जनवरी 29

"मेरा गीत है प्यारा ला दो ना"


मुझको मेरा गीत है प्यारा ला दो ना
सरगम की ये बहती धारा ला दो ना
भूल न जाना कर के वादा
हो न जाए एक पल भी ज्यादा
पल पल में गए युग युग बीत
मुझको मेरा प्यारा गीत ...
हाँ गीत ये प्यारा ला दो ना
निभा सको न तो क्यों किया है
प्रेम वचन क्यों तुमने लिया है
हार हमारी किसकी जीत
मुझको मेरा प्यारा गीत.....
हाँ गीत ये प्यारा ला दो ना
गीत नही ये अतीत है मेरा
हाँ यही तो है मनमीत मेरा
क्या हुआ जो रूठे दिल का मीत
मुझको मेरा प्यारा गीत
हाँ गीत ये प्यारा ला दो ना

रविवार, जनवरी 11

हुआ नही क्यों ?

क्यों नही है प्यार का दस्तूर यहाँ पर
प्यार भी लेकिन कहाँ मंजूर यहाँ पर
शराबों से अफीमों से बहकते है कदम
हुआ नही क्यों प्यार का सरूर यहाँ पर
बमों की बारूदों की क्यों होती हैं खेतियां
उगेंगे कब जाने आम 'ओ अंगूर यहाँ पर






सोमवार, जनवरी 5

मैं और मेरा लक्ष्य


बड़े विचित्र है हम दोनों

बड़े पवित्र है हम दोनों

मै और मेरा लक्ष्य

किसी त्रासदी के

चरित्र है हम दोनों

मै आस्तिक हूँ

मै प्राकृतिक हूँ

इसीलिए......

एक लक्ष्य चुना मैंने

सत्यम शिवम सुन्दरम

पाना पथ पहचाना मैंने

लिए हुए है आकर्षण

अद्वितीय ,अनुपम उत्कर्षं

कब पाऊं उसे प्रतीक्षा में वो

कैसे पाऊं उसे शंसय में मैं

साहस न उसमे उतरने का

न मुझमे उड़ने की क्षमता

एक आकाश की दूरी मध्य में

एकांत से बड़कर भयावहता

कभी छु लूँगा अपने लक्ष्य को मै

कभी उड़ पाउँगा नील नभ में मैं

कभी उगेंगे पंख मेरे

लहराऊंगा नील नभ में मैं

है यही प्रसन्नता पर्याप्त मन में

मेरा लक्ष्य सदा ही रहेगा मेरा

सुलभ हो या दुर्लभ हो मार्ग

एक लक्ष्य एक मार्ग ही होगा

पहुँच जाऊंगा उसके गुरुत्वकर्ष्ण में

फी चाहे वहीं निस्वास हो जाऊं

पर लग्न बहुत है लक्ष्य की

उस हेतु कुछ भी कर जाऊं

उसे छूने के लिए चाहे तो

हाथ भी अपने बेच डालूँ

उड़ कर जाने के लिए उस तक

पंख भी कटवा कर फ़ेंक डालूँ

मै अर्जुन का तीर.......

वो तैरती मीन का नेत्र है

है यही यही लक्ष्य मेरा

पूरा ब्रह्माण्ड मेरा रणक्षेत्र है

शनिवार, जनवरी 3

मेरे लिए तो आ

कोई आवारा हो

कोई बेसहारा हो

दीवाने हो

मस्ताने हो

हवा हो, बादल हो ।

या कोई पागल हो

बेपरवाह हो

लापरवाह हो

या कोई लावारिस है

आपसे ही तो .........

मेरी एक गुजारिस है

हवा की तरह आवारा होकर

मेरे लिए आ जाना हमारा होकर

मुझे ख़ुद में लपेट लो

खुसबू की तरह

कायनात में बिखेर दो ।

बेपरवाह बादल बन

भिगो दो मेरा तन मन

अपने दिल की दौलत लुटा दो

मेरा दिल खुशिओं से भर दो

मेरे लिए इतना तो कर दो

आवारगी को मंजिल मिला दो

तिस्नगी को शकुन दिला दो

मुझे मालूम है की

आजादगी है ज़िन्दगी

ज़िन्दगी आजादगी

पर एक मुकाम के बिना

बेकार है आजादगी




गुरुवार, जनवरी 1

हर नई सुबह

हर नई साँस पर

नयापन होता है

हर नई सुबह को

नयापन होता है

जिसकी ज़िन्दगी में हो ठहराव.....

उसे नया क्या ?पुराना क्या?

नया नया कहने से फर्क क्या पड़ता

एक भूखे की भूख को

एक मजबूर की मजबूरी को

मिल जाए निवाला भूखे को तो

पा लेता वो जीवन नवेला

मिल जाए सहारा मजबूर को

नव निर्माण हो सकता है

हर अंधेरे का अंत होता है

हर उजाला भी स्थाई नही होता

हर आँख में एक स्वप्न होता है

हर साँस में एक नयापन होता है