शुक्रवार, सितंबर 11

बहती हो तुम

"बहती हो तुम"

अंधेरों में लिपटी रौशनी हो तुम ,
मुझे लगता है की जिंदगी हो तुम.

जमुना सा वेग तुममे ,है गंगा सी पावनता ,
फिर आंसुओं सी क्यो सदा बहती हो तुम.

बसा सकती हो जब खुशी की वादियाँ,
क्यों बस्तियों में ग़मों की रहती हो तुम.

मुरझा जाती है मेरी दुनिया तेरे सिसकने भर से,
महक जाती है कायनात जब चहकती हो तुम.

जाती हो कहां ,अब तक न जान पाये ,
कभी जमीन तो कभी आसमान से उतरती हो तुम