शनिवार, अक्तूबर 3

सब नजारों को देख लें


"सब नजारों को देख लें "

भुला के दौर-ए-गम, चलो हम बहारों को देख लें

दरवाजे है बंद तो क्यूँ न उनकी दीवारों को देख लें

मौसम भी खुशगवार है आसमा भी साफ़ साफ़,

फुर्सत है चलो आज सब नजारों को देख लें

तकदीर जो बनादे या रख दे बिगाड़ कर,

खुद कैसे टूट जाते हैं उन तारों को देख लें

बँट जाता है आसमान भी क्या ज़मीं के साथ साथ

उन सरहदों को खोज ले उन दरारों को देख लें

खिलते हुए,हिलते हुए ओर टिमटिमाते हुए भी

हर उम्रके हर शौक के सितारों को देख लें

चांदनी के दरिया में डूब जाएँ आज रात

लेते है कैसे आगोश में किनारों को देख लें

गुरुवार, अक्तूबर 1

साँसे जब लापता होंगी

दिल में बसी तमन्ना ये जब जवां होगी,
उससे ज्यादा खूबसूरत चीज क्या होगी

निकल पड़ते हैं अश्क इस दर्द के होने से
कल मेरी गम ही मेरे गम की दवा होगी

आज रो पड़ता हूँ मै हर शरारत पे तेरी
कल हसूंगा जिसपे वो तेरी ही अदा होगी

हो जायेंगे एक हम दोनों आग की गवाही से
सर पे मेरे सेहरा ओर तेरे हाथों पे हिना होगी

फ़िर जमाने में कहीं भी हम नजर न आयेंगे,
अजनबी बन के ये साँसे जब लापता होंगी