शनिवार, नवंबर 21

मैंने देखा नही खुदा को

क्यूं रहता वो आजकल बड़ी कसमकश में है
मै कायल हूँ जिसका दिल जिनके बस में है

मैंने देखा नही खुदा को आज तक ये सच है ,
मेरा खुदा तो मेरे सनम सिर्फ़ तेरे दरश में है

शिकवा किया था बिन मिले जो आए थे एक बार
अब इल्तजा पे भी तगाफुल क्यूँ उस शख्श में है

यही सोच है दिन रात क्या वजह इस बेरुखी में
क्या दिल के बुरे है हम या कोई खोट नक्श में है

हटा दो तमाम परदे रूह रोशन हो जाने दो अब
पुर्निम का था ये चाँद जो अब क़ैद अमावस में है

हमें ख्वाहिशें मिटा देंगी तुम्हे नाराज़गी तुम्हारी
मन मुटाव सभी मिटा दे अभी बात आपस में है