शुक्रवार, फ़रवरी 27

खामोश हवा

बड़े बेताब है अब्र ,बड़ी खामोश हवा है
कोई बताये, भला इन्हे हुआ क्या है ?
सब्जोगुल का चेहरा मुरझाया सा लगा ,
किसी काँटों भरे हाथ ने छुआ क्या है ?
धुआं नही तो, फिर ये गुबार सा कैसा ?
उस और जो उठा , बता वो उठा क्या है ?
मुक़र्रर सजाये मौत है रकीबी के लिए,
बता तेरे मुल्क में ,इश्क की सज़ा क्या है ?
झुका दिया सर ,हर दरो दीवार पे हमने
न देखा की राम क्या-और खुदा क्या है ?

शुक्रवार, फ़रवरी 20

मुहब्बत का मशवरा

प्यार भी उनसे बहुत और फासले बहुत
आँख में आंसू मगर दिल में होंसले बहुत
संभल कर रहना जरा कांच की तरह
होतें है तेरे शहर में सुना हादसे बहुत
मिल कर जुदा होना जुदा होके फिर मिलना
प्यार में आते है अक्सर ऐसे सिलसिले बहुत
तेरे प्यार की इक तन्हाई पाने के लिए
छोड़ आया हूँ पीछे अपने महफिलें बहुत
मुहब्बत न करो हमसे यूँ टूट कर अभिन्न
आती है इसकी राह में सदा मुश्किलें बहुत