सोमवार, मार्च 22

विरह के रंग-सीमा गुप्ता का प्रथम काव्य संग्रह







रंग ओर रस प्रकृति के दो अनमोल उपहार है जिनके बिना मानवीय जीवन की सार्थकता की कल्पना की ही नहीं जा सकती,इन्द्रधनुष के सात रंग यंहा वंहा प्रकृति के कण कण में भरे पड़े है,इसी प्रकार से रस भी सर्वव्याप्त है ,रस का जो महत्व काव्य में है रंग का वही कला में होता है.ओर यदि रचनाकार काव्य में रस के साथ साथ रंग भी भर दे तो रचना सत्यम शिवम् सुन्दरम बन जाती है
ब्लॉगजगत की विख्यात रचनाकार सुश्री सीमा गुप्ता का प्रथम काव्य संग्रह
" विरह के रंग"
शिवना प्रकाशन -सीहोर (मध्य प्रदेश) द्वारा प्रकाशित हुआ ओर काव्य प्रेमियों के होली से रंगे हाथों से होता हुआ उनके हृदय को रंगों से सरोबार करने पहुँच गया,94 रचनाएँ ,जिनमे गीत,गजल,कविता ओर लघु कवितायेँ शामिल हैं -सुन्दर शब्दों ओर भावों से लबरेज अनोखा गुलदस्ता है
विरह चाहे किसी की निष्ठुरता का परिणाम हो या नियति के अधीन इंसान की मज़बूरी -होती आग ही है कोमल भावनाएं जल कर राख हो जाती है ओर व्यक्ति हार कर, टूट कट, बिखर कर रह जाता है लेकिन सीमा गुप्ता जी की रचनाओं की केन्द्रीय नायिका जो दुःख,दर्द,व्याकुलता,बेबसी ओर विरह से पीड़ित दिखाई जरुर देती है लेकिन वह कमजोर नहीं हुई है,उसका कठोर व्यक्तित्व,दृढ इच्छाशक्ति ओर स्वावलंबन उसे एक विशेष स्थान प्रदान करता नजर आता है,उनके कहे शब्द इतने महतवपूर्ण नहीं हैं जितने अनकहे शब्द.उनकी कविता का असल अहसास उनके लिखे शब्दों की बजाय उस दर्द में है जिसे वे शब्दों का रूप देकर कविता के रूप में प्रस्तुत कर देती हैं ये रचनाएँ महज शब्दों का संकलन नहीं अपितु "शब्दों की वादियों" में बसे किसी गाँव में "ख्वाबों के आँगन" में "यादों की पालकी" में सवार नायिका के विरह की तस्वीर है जो "वेदनाओं के वृक्ष" की हर "शाख" पर "यादों के पुष्प" खिला कर जीवन जीने की क्षमता रखती है
यंहा विरहन के अश्क बहते जरुर हैं लेकिन मिटटी में मिल जाने को नहीं,आंसू यंहा बह कर झील हो जाते है और विरहन उस "झील को दर्पण बना" कर "सुखमय प्यार" की "जन्नत" निहार लेती है,
दिल के अरमानों को अक्सर आंसुओ में बहते देखा जाता है , लेकिन यंहा अरमां निकल कर व्यर्थ नहीं जाते बल्कि पुनसृजित हो कर विरह के रंग बन काव्य प्रेमिओं के मन और आत्मा को पुलकित कर देते है.
यथा :



" तिल तिल के जल राख हुए
अरमान उर्वरक बन कर बिखर जाते हैं "



फुरक़त के तमाम सितम यहाँ महबूबा को हताश निराश करने में नाकामयाब रह जाते है क्योंकि वह तो इन्हें अपना हौसला ओर सहारा बना कर जिन्दगी की चुनोतिया स्वीकार कर लेने का फलसफा जानती है



" दर्द,कसक,दीवानापन
यह रोज की बेचैनी उलझन
यह दुनिया से उकताया मन
यह जगती आँखे रातों में,
तन्हाई में मचलन,तड़पन
ये आंसू ओर बेचैन सा मन
सीने की दुखन,आँखों की जलन
बिरहा के गीत मीरा के भजन
सब कुछ जो आज सहारा है
वो सब कुछ सिर्फ तुहारा है ( पृ.28
)

संग्रह की ज्यादातर रचनाएँ कला की बारीकियों या शिल्प के नए प्रयोगों से बेपरवाह, बेहद पठनीय ओर संग्रहणीय है शीर्षक कविता नैनो टेक्नॉलोजी की अदभुत मिसाल लगी जिसमे पूरे संग्रह का सारांश ओर रचनाकार का दृष्टीकोण साफ़ साफ़ शब्दों में मोती की तरह झलकता है



आँखों में तपिश ओर रूह की जलन,
बोझिल आहें,ख़ामोशी की चुभन,
सिमटी ख्वाहिश,,साँसों में घुटन,
जिन्दा लाशों पे वक़्त का क़फ़न,
कितने सुन्दर ये विरह के रंग / ( पृ।89)



सीमा गुप्ता जी की काव्य रचनाएँ सरस ओर सरल भाषा में होने के कारण सबका मन मोह लेने में पूरी तरह से सक्षम है । हिंदी-उर्दू भाषा का गंगा -जमुनी संगम उनकी रचनाओं में अक्सर देखने को मिलता है जो इनके काव्य को ओर भी आकर्षक बना देता है। सुन्दरता देखिये


हवाओं को रंगता रहा वों


इंद्र धनुषी ख्वाबों की तुलिका से


बेशक यह सीमा जी का प्रथम काव्य संग्रह है लेकिन ब्लॉगजगत से जुड़े हिंदी-प्रेमिओं के लिए यह नाम नया नहीं है । अंतरजाल पर सीमा जी एक स्थापित ब्लॉगर की हैसियत से वर्षों से रचनाकर्म करती आ रही हैं ओर अनेक सुधि पाठकगण ओर रचनाकार उनके काव्य को पसंद करते है । इस कृति के लिए सीमा जी को बहुत बहुत मुबारकबाद ओर उनकी साहित्यिक यात्रा के सुनहरे भविष्य की कामना करते हुए मै अभिन्नकल्पना ब्लॉग से उन्हें अनेकानेक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ



सुरेन्द्र "अभिन्न "