शनिवार, नवंबर 5

अब किस से करूँ बात...



दौड़ने लगा इश्क की रगों में लहू फिर से,
दिल को लगी जीने की जुत्सजू फिर से/-

कुछ तो बात है तुझमे ऐ जाने बहार ,
बिखरने लगी हवाओं में खुश्बू फिर से /-

अब किस से करूँ बात इस आशनाई की,
दिखता है हर तरफ क्यूँ तू ही तू फिर से /-

साजिश मेरे खिलाफ जहाँ रचती हवाएं हैं,
चिरागे दिल कैसे वंहा मैं जलाऊँ फिर से/-

आँखों से बयाँ कर दिया मंसूबा-ए-दिल,
लबों पे वो अलफ़ाज़ क्यूँ ले आऊं फिर से /-

गिर गिर के संभल जाना है जिंदगी 'अभिन्न'
ठोकर से सीख लेकर क्यूँ न चल पडूँ फिर से /-

शनिवार, अक्तूबर 1

आज तो चाँद बहुत ....






अन्धेरों भरी जिंदगी की छटपटाहट में,


कदम रखती किसी ख़ुशी की आहट से


फिजां की .........


उस हसीँ शाम को,


अचानक आसमान की तरफ गर्दन उठा के,


उसने मुस्करा कर कुछ कहा...


ज़िक्र ...चाँद का था...


धडकनें दिल की घट बढ़ रही थी /


"..............कुछ भी हो आज


चाँद बहुत सुन्दर लग रहा है,


घर जाकर भी इसे जरुर देखना "


ओर ये सच निकला।


घर की छत से भी चाँद...


उतना ही ख़ूबसूरत लगा॥


जितना किसी


खुबसूरत एहसास को होना चाहिए


सच ये भी है॥


की मायने बदल जाते हैं


अगर इस दूनिया ,जिंदगी ओर सोच में


उजालों से ज्यादा अँधेरे हो जाएँ ।


क्योंकि फिर ग़मज़दा हो जाती है दूनिया,


ओर गुमशुदा सी जिंदगी....


ओर सोच हो जाती है निष्ठुर


वजूद रौशनी का दे देता है.....


दूनिया को एक नई उर्जा,


जिंदगी को नई दिशा..... ओर


सोच को नया आयाम।


सच कहा था आपने ऐ मेरे दोस्त


की "आज तो चाँद बहुत सुन्दर लग रहा है"


आज ये रहनुमा .....


पूरी दूनिया,मेरी जिंदगी ओर मेरे ज़मीर कों


खुशनूमा कर रहा है।


आज तो चाँद बहुत सुन्दर लग रहा है


वंहा से भी जहाँ से हम दोनों ने इसको देखा था......


ओर यंहा से भी जहाँ हम दो है ........


मै ओर मेरा चाँद




































































































गुरुवार, जून 30

रहस्य









क्या गुमसुम रहना तेरी प्रकृति है ?



क्या चिंताओं के मानचित्र को



तेरा ही चेहरा मिला पृष्ठभूमि के लिए



क्यों नही ? मुस्करा के इस रहस्य से



परदा उठा देते हो तुम,



कब तक मोनालिसा की भांति



रहस्य में लिपटी रहोगी तुम



उन आंखों के पानी का क्या हुआ ?



धरती के जल भंडारों की तरह



विलुप्त हो गया कहीं ?

सोमवार, अप्रैल 18

कितना अधूरापन था ..


तुम मिले तो ये एहसास हुआ,

कितना अधूरापन था, तेरे बगैर।


दिल जब तेरे दिल के पास हुआ,

कितना आवारापन था,तेरे बगैर ।


जिंदगी में जब कभी हताश हुआ

कितना बेगानापन था,तेरे बगैर ।


मुझे मुक्कमल होना रास हुआ ,

कितना अधुरा जीवन था,तेरे बगैर।


तेरे लफ़्ज़ों से लगाव खास हुआ,

कितना बेमानी जीवन था, तेरे बगैर।


मेरे हिस्से का भी मधुमास हुआ,

कितना सुखा उपवन था,तेरे बगैर।

बुधवार, मार्च 9

तेरे अल्फाज़ जो मेरी जुबाँ हो जाएँ


तेरे अल्फाज़ जो मेरी जुबाँ हो जाये
मै जी लूं ओर तू मेरी जाँ हो जाये /-


हो ऐसे मेरा तेरा एक दूजे से वास्ता,
मुझ से तेरी तुझ से मेरी पहचाँ हो जाये /-


दरिया-ए-दर्द हो जाये समंदर शकूं का
बेचैन उमंगें दिल की, उफनते तूफाँ हो जाये /-


कोई ग़ैर न आ पाए तेरे मेरे बीच में,
खुदगर्जगी हमारी वादा-ओ-पैमाँ हो जाये /-


वाबस्तगी दो दिलों की वाजिब है कुछ करेगी ,
या शदाइत शहीद होंगी या हम फना हो जाये /-


खामोशियाँ जब जब जमीन पर टूटी हैं 'अभिन्न'
मुमकिन है इंकलाबी आबो हवा यहाँ हो जाये /-

***

बुधवार, जनवरी 5

रिश्तों का पता


ना फासलों की खबर ना मौसमों का पता ,
बस चल पड़े ढूंढने, हम दोस्तों का पता /-

मंजिलों की लगन काम कुछ यूँ कर गई ,
रास्तों में ही मिलता रहा नए रास्तों का पता

वो कैसा होगा उसे कभी देखा तो नहीं
कदम उठ रहे थे लिए ख्वाहिशों का पता /-

करता जब किसी से तेरे शहर की बात
मिलता हर किसी से बस मुश्किलों का पता /-

शाम हुई तो रहा सुबह होने का इंतज़ार
सुबह हुई ओर मिला कई मीलों का पता /-

अजनबी सा शहर ओर अजनबी से लोग,
खोजना है यहीं दिल के रिश्तों का पता/-