बुधवार, जनवरी 5

रिश्तों का पता


ना फासलों की खबर ना मौसमों का पता ,
बस चल पड़े ढूंढने, हम दोस्तों का पता /-

मंजिलों की लगन काम कुछ यूँ कर गई ,
रास्तों में ही मिलता रहा नए रास्तों का पता

वो कैसा होगा उसे कभी देखा तो नहीं
कदम उठ रहे थे लिए ख्वाहिशों का पता /-

करता जब किसी से तेरे शहर की बात
मिलता हर किसी से बस मुश्किलों का पता /-

शाम हुई तो रहा सुबह होने का इंतज़ार
सुबह हुई ओर मिला कई मीलों का पता /-

अजनबी सा शहर ओर अजनबी से लोग,
खोजना है यहीं दिल के रिश्तों का पता/-