तुम्हे सोचता हूँ ,
तो पाता हूँ तुम्हे ,
अपने ही आस पास -/
तुम्हे छूने लगता हूँ तो
टूट जाता है एक और स्वपन -/
ये जो मेरी पलकों पे
अनगिनत मोती
छुपे हैं इंतज़ार के -/
बस तेरी एक झलक के
तलबगार हैं ..
और जो मेरे लबों पे
आने को बेताब है बरसों से ,
उस मुस्कराहट को
बस तेरे आने का इंतज़ार है -/
मैं शब्दों का घर बना कर ,
तुम्हे छुपा भी नहीं सकता ,
लोग शब्दों के मनमर्जी से
अर्थ निकाल लेते हैं ........../
भाव समझे बिना
तुम्हे और मुझे रुसवा कर देंगे ......
मोम की छतरियों से ,
कड़ी धुप में ...साया बना रहे हो-/
धुप तेज़ होगी
छतरियां पिघल जाएँगी
एक मुददत और सही ,
चलो .....
बारिशों का
इंतज़ार करते है
छतरियों के
साए में आने के लिए /