सोमवार, अक्तूबर 7

घर से निकलो ,क्या रखा है घर में ,
मंजिले उनकी, जो निकले सफ़र में /

खास हो गई है अब हैसियत मेरी, 
कुछ खासियत है, उसकी नज़र में/-

सीप में गिर के वो बूँद मोती हुई,
क्या होती जो होती अपने घर में /-

अंधेरों को वही चीर के निकलते है,
रखते है जो आग अपने जिगर में /-

एहतियात रखना अब दोस्तों के साथ ,
अफ़वाह सी फ़ैल रही है पूरे शहर में /-

हादसे बिकते है अब लोगों की तरह
सच कहाँ दिखता है किसी भी खबर मे /-

........( सुरेन्द्र 'अभिन्न' 

रविवार, अक्तूबर 6

मैं जब उदास हो जाता हूँ,





मैं जब उदास हो जाता हूँ,
बहुत ही खास हो जाता हूँ -/


वो दरिया बन के मिलते हैं,

मैं जोर की प्यास हो जाता हूँ-/


कब तक रहोगे गुमशुदा ,

मैं तेरी तलाश हो जाता हूँ-/


वो सिमटे तो धरती हो गए,

मैं खुला आकाश हो जाता हूँ-/


धड़कन बना दिल के लिए ,

लब छुएं तो सांस हो जाता हूँ -/


पत्थर दिल कोई मिल जाये,

मैं संग तराश हो जाता हूँ -/