शुक्रवार, जुलाई 31

मै जा रहा हूँ,जिन्दगी

जिंदगी तेरी खामोशी हमसे सही न जायेगी
अब दास्तान दर्द की हमसे कही न जायेगी

बेघर को देके आसरा क्यूँ एहसान किया था ?
मेहमान की तरह इतना सम्मान किया था ?

तेरा घर, तेरी गली, तेरा शहर छोड़ कर
मैं जा रहा हूँ आज सारे बंधन तोड़ कर

मेरी वफ़ा पे शायद तुमको यकीं न आएगा
तुमको भी हमसे बेवफा कहा न जाएगा

शुक्रवार, जुलाई 17

हम चाहते रहे तुम भूलाते रहे हो .


हमे खो देने का डर जताते रहे हो ।
पाने से क्यों हमेशा कतराते रहे हो ।

दिल ही तो था, तेरे क़दमों के नीचे,
जिसे ठोकर हर कदम लगाते रहे हो ।

कोशिश रही हम बात करे खुलकर
खामोशी तुम लबों पर सजाते रहे हो

चाहत भरे दिन थे जाने कहाँ छूटे ?
हम चाहते रहे तुम भुलाते रहे हो ।

गुनाह हुआ हमसे हमें ही नही मालूम,
सजा लम्हा लम्हा हमें दिलाते रहे हो ।

छोड़ आए थे कहाँ ,खोजते हो किस जगह ?
बेवफा होकर भी कैसे प्यार जताते रहे हो ।

बंधता गया राम सीमाओं में हर बार मै
सीता बन, धरा में तुम समाते रहे हो ।

रविवार, जुलाई 5

इरफान हुआ मुझको


मिले तुम की लगा जैसे सब से जुदा हो गया /
तेरा प्यार दर्द हो गया, यही दर्द दवा हो गया /

तेरी चाहत की ही सब मेहरबानियाँ है ये की,
कतरा था मै कतरे से कब का दरिया हो गया /

इरफान हुआ मुझको इक नई रौशनी का जब
ये वजूद मेरा तेरी बाँहों के दरमियाँ हो गया /

दे दिया इन्साफ उसने प्यार की दरखास्त पर
मुझेसिला मिल गया दुनिया का इफ्लाह हो गया /

नक्शा दो जहाँ का देखो, बदल डाला इस इश्क ने
इसमें खुदा इन्सां हो गया ,इन्सां खुदा हो गया /

तेरे आने से ये खाक दिल भी गुलिस्तान हो गया
सज संवर गई ज़िन्दगी अब खौफ हवा हो गया /

एक पत्थर के टुकड़े को,कीमती याकूत बना दिया
तुमने छुआ प्यार से तो, मै क्या से क्या हो गया /
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याकूत =हीरा
इरफान = ज्ञान
इफ्लाह = भला