खुशी के धागे मे आंसुओ की लड़ी है।-
जिन्दगी देखो कितनी उलझी पड़ी है।-
खुशियां हैं पर नज़र कम ही आती है
हर खुशी पे गम की परत जो चढी है।-
जाने किस वहम का शिकार है आदमी,
बेगानी खुशी लगती सभी को बड़ी है।-
मीलों के फासले तय करने के वास्ते,
रोज़ी रोटी छोड़ सड़क पर भीड़ उमड़ी है ।-
कभी सियासत कभी कुदरत के हाथों,
मरती यंहा इन्सानियत ही तो हर घड़ी है।-
हकों के लिये नुक्सान भी अपना कर लिया,
कहीं बसें जली तो कंही रेलपटरी उखड़ी है।-