"सब नजारों को देख लें "
भुला के दौर-ए-गम, चलो हम बहारों को देख लें
दरवाजे है बंद तो क्यूँ न उनकी दीवारों को देख लें
मौसम भी खुशगवार है आसमा भी साफ़ साफ़,
फुर्सत है चलो आज सब नजारों को देख लें
तकदीर जो बनादे या रख दे बिगाड़ कर,
खुद कैसे टूट जाते हैं उन तारों को देख लें
बँट जाता है आसमान भी क्या ज़मीं के साथ साथ
उन सरहदों को खोज ले उन दरारों को देख लें
खिलते हुए,हिलते हुए ओर टिमटिमाते हुए भी
हर उम्रके हर शौक के सितारों को देख लें
चांदनी के दरिया में डूब जाएँ आज रात
लेते है कैसे आगोश में किनारों को देख लें
7 टिप्पणियां:
positive attitude wali rachna...kuchh bhi kyun na ho jaye..agar jeevan kuchh pal hai to kyun na jee liya jaye...chahe sukh me sukh rah ke ya dukh me sukhi rah ke....
चांदनी के दरिया में डूब जाएँ आज रात
लेते है कैसे आगोश में किनारों को देख लें
" whole of the poem is so beautiful and touching, but these two lines are realy soul of the poem"
regards
bahut hi sunder racha......
बँट जाता है आसमान भी क्या ज़मीं के साथ साथ
उन सरहदों को खोज ले उन दरारों को देख लें
waah! bahut khoob khyal hain.
बँट जाता है आसमान भी क्या ज़मीं के साथ साथ
उन सरहदों को खोज ले उन दरारों को देख लें
अभिन्न जी बहुत ही शानदार नज़्म ....हर पंक्तियाँ दिल के पास से गुजरती हुई ......!!
तकदीर जो बनादे या रख दे बिगाड़ कर,
खुद कैसे टूट जाते हैं उन तारों को देख लें
बहुत सुन्दर रचना है ..... खास कर ये दो पंक्ति बेहद खुबसूरत है ....
आप अभिन्न होकर भी भिन्न हैं ! आपने मेरे रचनाओं को पसंद किया ... इसका आभार .... आपके ब्लॉग पढ़कर अच्छा लगता है .... अभी पूरा पढ़ नहीं पाया हूँ ... थोडा और समय लगेगा ... इसलिए इसे अपनी तालिका में शामिल कर रहा हूँ .... शुभकामनाएं !
bht hi khoobsurat ehsaas hai ...
bht hi sundar rachna...
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