खुदा से दिलरुबा की हम शिकायत करते हैं
वो रूठा हुआ है जिससे हम, मुहब्बत करते हैं
उसने ही जलाया प्यार से, हाथों को चूम के,
बनके फानूस जिसकी हाथ हिफाजत करते हैं
कहते थे मेरे इश्क में,क्या होगा फायदा ?
मुहब्बत नहीं जैसे के वो, तिजारत करते हैं
सफ़र कितना बचा है बाकी अब मौत से पहले,
टूट चुके जो दिल कब, जीने की हसरत करते हैं
मिल के न मिल सकी वो, मंजिल ही थी ऐसी
जिंदगी लगे थे जो कभी वो, अब कयामत करते हैं
7 टिप्पणियां:
बन के फ़ानूस हिफ़ाजत करे ,मिल कर भी न मिल सकी वह मंजिल ही ऐसी थी , जीने की हसरत करने वाले दिल टूट चुके । मंजिल वाला शेर बहुत अ़च्छा लगा क्योंकि ""सिर्फ़ इक कदम उठा था गलत राहे इश्क में , मंजिल तमाम उम्र मुझे ढूंढती रही ""
सफ़र कितना बचा है बाकी अब मौत से पहले,टूट चुके जो दिल कब, जीने की हसरत करते हैं
बेहद सम्वेदनशील अभिव्यक्ति ......सच कहा टूटे दिल को जीने की कोई हसरत नहीं होती .....मगर जीना भी पड़ता है हर हाल में......"
regards
ek umda rachna hai ....
ek ek sher bahut pyara hai
manzilo ko pane me rasto ko chhod aye,
manzil b na mili ,raste b guzar aye.
बहुत कुछ कह गए वो चंद भीगे हुए से शब्द
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने ! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
bahut hi sundar ghazal hai...
har ek sher achha hai..
par bait-ul-ghazal hai...
कहते थे मेरे इश्क में,क्या होगा फायदा ?
मुहब्बत नहीं जैसे के वो, तिजारत करते हैं
Ye mera khyal hai...
waise puri ghazal hi sundar hai..
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