इंसान कम बस्ती मे भगवान बहुत थे
देखा बार बार पुरा शहर घूम के
घर कम मिले लेकिन मकां बहुत थे
हो गया दिखावा हर एक बात का
चोट कम चोट के निशान बहुत थे
खोल कर जुबां दर्द भी बता न पाये
उस भीड़ मे मेरे जैसे बेज़ुबान बहुत थे
भूखे रहे थे बच्चे उस घर के कई रोज
उस घर मे आए उनके मेहमान बहुत थे
1 टिप्पणी:
खोल कर जुबां दर्द भी बता न पाये
उस भीड़ मे मेरे जैसे बेज़ुबान बहुत थे
भूखे रहे थे बच्चे उस घर के कई रोज
उस घर मे आए उनके मेहमान बहुत थे
" dard ke behtreen tasveer byan kerteen hain aapke ye rachna"
keep it up
Regards
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