घरो में उन्मुक्त होकर जीना सीख गए
घर की रसोई में खाना पीना सीख गए
जहाँ दो पल न दे सके थे उसी घर में
कैसे रहना है महीना महीना सीख गए
हर कोई है फुर्सत में नहीं जल्दी कोई
कमरा- बिस्तर- आँगन -ज़ीना सिख गए
हुनरमंद हो रहे है सब नज़रबंद से लोग
पकाना खिलाना बुनना सीना सिख गए
दहशतो को मुल्क में होंसलो ने हरा दिया
मुश्किलों में हँसते हँसते जीना सिख गए
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