सोमवार, मई 18

फासले

खुशी के धागे मे आंसुओ की लड़ी है।-
जिन्दगी देखो कितनी उलझी पड़ी है।-

खुशियां हैं पर नज़र कम ही आती है
हर खुशी पे गम की परत जो चढी है।-

जाने किस वहम का शिकार है आदमी,
बेगानी खुशी लगती सभी को बड़ी है।-

मीलों के फासले तय करने के वास्ते,

रोज़ी रोटी छोड़ सड़क पर भीड़ उमड़ी है ।-

कभी सियासत कभी कुदरत के हाथों,
मरती यंहा इन्सानियत ही तो हर घड़ी है।-

हकों के लिये नुक्सान भी अपना कर लिया,

कहीं बसें जली तो कंही रेलपटरी उखड़ी है।-







3 टिप्‍पणियां:

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

वाह। एकदम सटीक एवं सार्थक लिखा है अपने।

बेनामी ने कहा…

सादर धन्यवाद सर

बेनामी ने कहा…

धन्यवाद पाण्डेय जी