सोमवार, मई 18

फासले

खुशी के धागे मे आंसुओ की लड़ी है।-
जिन्दगी देखो कितनी उलझी पड़ी है।-

खुशियां हैं पर नज़र कम ही आती है
हर खुशी पे गम की परत जो चढी है।-

जाने किस वहम का शिकार है आदमी,
बेगानी खुशी लगती सभी को बड़ी है।-

मीलों के फासले तय करने के वास्ते,

रोज़ी रोटी छोड़ सड़क पर भीड़ उमड़ी है ।-

कभी सियासत कभी कुदरत के हाथों,
मरती यंहा इन्सानियत ही तो हर घड़ी है।-

हकों के लिये नुक्सान भी अपना कर लिया,

कहीं बसें जली तो कंही रेलपटरी उखड़ी है।-







शनिवार, मई 9

अन्धेरों के खिलाफ


जाने कब फूट जाये एक बुलबुला तो है,
जिन्दगी होने-ना होने का सिलसिला तो है

किसी की बरबादियों पर खुश है कोई,
कोई तो वजह है उसे कुछ मिला तो है

जिस्म मरते हैं ख्यालात नही मरा करते,
आज भी सच की राह पे कोई चला तो है 

रात आई तो क्या कभी यंहा दिन ना होगा
लौट आयेगा सूरज,अभी महज़ ढ़ला तो है

हवाओं को खबरदार करो कि रूक जायें,
अन्धेरों के खिलाफ कोई चिराग जला तो है



Who knows when the bubble may burst in the air,
Yet life lingers on — a fragile affair.

Some smile at ruins others have braved,
Perhaps it’s their gain from what someone else paved.

Bodies may perish, but thoughts never die,
Someone still walks where truth dares to lie.

The night has descended — but fear not the gloom,
The sun shall return, it’s just left the room.

Warn the wild winds — let them be still,
A lone flame has risen, defying the chill.


फ़ासले

कभी मिलना जरुरी था हमारी ख़ुशी के लिए /-
अब लाजमी हो गए फासले ज़िंदगी के लिए /-

जिस कुदरत ने बनाया था अपने हाथों से उसे  
उसी  कुदरत से दशहत आ रही आदमी के लिए /-

चाँद तारों को पैरों तले अपने  रौंदने वाला   
अंधेरो से लड़ रहा है अदद रौशनी के लिए /- 

तेरे रॉकेट, तेरे एटम, तेरी ईज़ादकारियाँ 
कुछ काम न आएंगे  तेरी बेबसी के लिए /-

कुदरत के  साथ रह कर समझ लो ज़िंदगी
बड़ी  ख्वाहिशे छोड़ डालो सादगी के लिए /-
 
मुसीबतें आएँगी चली जाएँगी  तारीखें गवाह हैं 
इंसानियत ना खोने देना कभी आमदनी के लिए /-
 

शुक्रवार, मई 8

घरो में लोग



घरो में उन्मुक्त होकर जीना सीख गए
घर की रसोई में खाना पीना सीख गए

जहाँ दो पल न दे सके थे उसी घर में
कैसे रहना है महीना महीना सीख गए

हर कोई है फुर्सत में नहीं जल्दी कोई
कमरा- बिस्तर- आँगन -ज़ीना सिख गए

हुनरमंद हो रहे है सब नज़रबंद से लोग
पकाना खिलाना बुनना सीना सिख गए

दहशतो को मुल्क में होंसलो ने हरा दिया
मुश्किलों में हँसते हँसते जीना सिख गए

शुक्रवार, मई 1

"तुम"










"तुम"

अंधेरों में लिपटी रौशनी हो तुम ,
मुझे लगता है की जिंदगी हो तुम.


जमुना सा वेग तुममे ,है गंगा सी पावनता ,
फिर आंसुओं सी क्यो सदा बहती हो तुम.


बसा सकती हो जब खुशी की वादियाँ,
क्यों बस्तियों में ग़मों की रहती हो तुम.

मुरझा जाती है मेरी दुनिया तेरे सिसकने भर से,

महक जाती है कायनात जब चहकती हो तुम.

जाती हो कहां ,अब तक न जान पाये ,
कभी जमीन तो कभी आसमान से उतरती हो तुम










गुरुवार, अप्रैल 30

मेरे हक

मेरे हक़ जब तक  मुझे मिल नहीं जाते ,सुनो ,
मै इस राह में नया एक चराग जलाता रहूँगा