रविवार, अगस्त 3

कतरा कतरा -लम्हा लम्हा


कतरा कतरा एहसास में तुम।
लम्हा लम्हा हर सांस में तुम ।

संवर जाये यूँ जीवन सारा
रहो अगर मेरे पास में तुम ।

राहत कितनी है इस चाहत में
बसे हो मेरे विश्वास में तुम ।

एक लम्हे से संवरे क्या जीवन ?
जनम जन्म की प्यास में तुम

तेरे बिन क्या पास 'अभिन्न' के
हर आम में तुम हर खास में तुम

6 टिप्‍पणियां:

vipinkizindagi ने कहा…

राहत कितनी है इस चाहत में
बसे हो मेरे विश्वास में तुम ।....

bahut khub.. kya likha hai...
mazedar...

'sakhi' 'faiyaz'allahabadi ने कहा…

"मेरे अस्तित्व के इतिहास में तुम
आत्मप्रेम आवास में तुम

में तुम्हारा तुम पूरक मेरे
प्यार के हर एहसास में तुम

प्रेम प्रतीक्षा के प्रसंग में
हर आहट आभास में तुम "........."sakhi"

* મારી રચના * ने कहा…

katra katra..lamha lamha....
likha hia apane
bahut hi badhiya....

shelley ने कहा…

तेरे बिन क्या पास 'अभिन्न' के
हर आम में तुम हर खास में तुम
Kya khubsurat abhioyakti hai bahut khub. achchi kavita hai

mere blog par aane ka liye dhanywad.

Pawan Kumar ने कहा…

bahoot khoob .pahli baar blog par aaya achha laga. Ghazal me grammaer ki kami to dikhti hai magar bhaw bahut accha hai

रंजना ने कहा…

वाह........लाजवाब बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ हैं.