
"सब नजारों को देख लें "
भुला के दौर-ए-गम, चलो हम बहारों को देख लें
दरवाजे है बंद तो क्यूँ न उनकी दीवारों को देख लें
मौसम भी खुशगवार है आसमा भी साफ़ साफ़,
फुर्सत है चलो आज सब नजारों को देख लें
तकदीर जो बनादे या रख दे बिगाड़ कर,
खुद कैसे टूट जाते हैं उन तारों को देख लें
बँट जाता है आसमान भी क्या ज़मीं के साथ साथ
उन सरहदों को खोज ले उन दरारों को देख लें
खिलते हुए,हिलते हुए ओर टिमटिमाते हुए भी
हर उम्रके हर शौक के सितारों को देख लें
चांदनी के दरिया में डूब जाएँ आज रात
लेते है कैसे आगोश में किनारों को देख लें