शनिवार, नवंबर 21

मैंने देखा नही खुदा को

क्यूं रहता वो आजकल बड़ी कसमकश में है
मै कायल हूँ जिसका दिल जिनके बस में है

मैंने देखा नही खुदा को आज तक ये सच है ,
मेरा खुदा तो मेरे सनम सिर्फ़ तेरे दरश में है

शिकवा किया था बिन मिले जो आए थे एक बार
अब इल्तजा पे भी तगाफुल क्यूँ उस शख्श में है

यही सोच है दिन रात क्या वजह इस बेरुखी में
क्या दिल के बुरे है हम या कोई खोट नक्श में है

हटा दो तमाम परदे रूह रोशन हो जाने दो अब
पुर्निम का था ये चाँद जो अब क़ैद अमावस में है

हमें ख्वाहिशें मिटा देंगी तुम्हे नाराज़गी तुम्हारी
मन मुटाव सभी मिटा दे अभी बात आपस में है

12 टिप्‍पणियां:

हरकीरत ' हीर' ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
मनीषा ने कहा…

hi,
bahut hi ...khoobsut
ek ajeeb si kashmakash jhalak rahi hai jaise ki
tod lu us phool ko ki seene se laga k rakhu,
dar bhi hai murjha na jaye ,
abhi mere bageeche me hai

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

क्यूँ रहता वो आजकल बड़ी कसमकश में है
मै कायल हूँ जिसका दिल जिनके बस में है

लो जी ये तो आप ही बेहतर बता सकते है....क्यों ये कसमकश है ......लाजवाब शेर ....!!

मैंने देखा नही खुदा को आज तक ये सच है ,
मेरा खुदा तो मेरे सनम सिर्फ़ तेरे दरश में है

वाह... इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है भला .......!!

कभी किया था सिकवा तेरे शहर से गुजर आए
इल्तिजा पे गौर क्यूँ नही ये निगाह तरस में है

कभी किया था सिकवा तेरे शहर से गुजर आए...ये पंक्ति कुछ समझ नहीं आई ...koun गुजर आए...? सिकवा - शिकवा ....?

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

क्यूँ रहता वो आजकल बड़ी कसमकश में है
मै कायल हूँ जिसका दिल जिनके बस में है

लो जी ये तो आप ही बेहतर बता सकते है....क्यों ये कसमकश है ......लाजवाब शेर ....!!

मैंने देखा नही खुदा को आज तक ये सच है ,
मेरा खुदा तो मेरे सनम सिर्फ़ तेरे दरश में है

वाह... इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है भला .......!!

कभी किया था सिकवा तेरे शहर से गुजर आए
इल्तिजा पे गौर क्यूँ नही ये निगाह तरस में है

कभी किया था सिकवा तेरे शहर से गुजर आए...ये पंक्ति कुछ समझ नहीं आई ...koun गुजर आए...? सिकवा - शिकवा ....?

अभिन्न ने कहा…

धन्यवाद मनु जी आपकी टिप्पणी के लिए,हरकीरत जी सिकवा.... " शिकवा " ही होना चाहिए था वर्तनी सुधार के लिए शुक्रिया,पंजाबी चुटकला बहुत ही सटीक लगा,शेर बहुत उलझा हुआ था दोबारा से सुधार कर लिखने की कोशिश की है शायद बात बन जाये .....जब प्रेमी एक बार प्रेमिका के शहर में किसी काम से जाता है और उससे बिना मिले ही वापिस आ जाता है बाद में पता चलने पर प्रेमिका ने बहुत शिकवे शिकायतें की और जब प्रेमी अब उससे मिलना चाहता है तो वह उसकी प्रार्थना पर उदासीन है इस बदलाव पर ही ये शेर लिखने की कोशिश थी अपरिपक्व होने के नाते गलतियाँ होना स्वाभाविक है परन्तु आपका कमेन्ट स्वागत योग्य है बहुत बहुत धन्यवाद इस रचना को पढने और सराहने के लिए .

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

wah..achhi rachna..

अभिषेक आर्जव ने कहा…

'मन मुटाव सभी मिटा दे अभी बात आपस में है'
अच्छी लगी ये पंक्तियां !

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सुन्दर गज़ल है, कहीं-कहीं अशुद्धियां खटक रही हैं.

Urmi ने कहा…

अभी आपकी तबियत कैसी है? मैं भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि आप जल्द से जल्द स्वस्थ हो जाये! आपके नए पोस्ट का इंतज़ार रहेगा!
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ! इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत कुछ कह गए आप अपनी इस कविता में हर शब्द बोलता हुआ और दिल को गहराई तक छूता है

ओह !!!!!!!!!!!!!!!
देखा नहीं खुदा तो ये हाल है
गर पा लिया खुदा तो जहाँ से जाओगे

kshama ने कहा…

हटा दो तमाम परदे रूह रोशन हो जाने दो अब
पुर्निम का था ये चाँद जो अब क़ैद अमावस में है
Kya khoob alfaaz hain!

अभिन्न ने कहा…

योगेन्द्र जी,आर्जव जी,वंदना जी ,बबली जी,रचना ओर क्षमा जीआप सब का ब्लॉग पर पधारने ओर हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद