
परेशां जब हुए हम मौसमों के लिए,
राहें आसां हो गई हादसों के लिए,
नफरत तुम्हारी अब सही न जाएगी,
दुश्मनों सी सजा क्यूँ दोस्तों के लिए ?
करना है तो कर तकसीम ज़ज्बात को
क्यूँ मरते -मारते हो सरहदों के लिए,
बंदिश नहीं कोई चिनाबो-सतलुज पर,
होती क्यूँ सियासत पानियों के लिए।
जीने को दो दाना जरुरत रोजाना उसकी
कब उड़ा बता परिंदा मोतियों के लिए