ना फासलों की खबर ना मौसमों का पता ,
बस चल पड़े ढूंढने, हम दोस्तों का पता /-
मंजिलों की लगन काम कुछ यूँ कर गई ,
रास्तों में ही मिलता रहा नए रास्तों का पता
वो कैसा होगा उसे कभी देखा तो नहीं
कदम उठ रहे थे लिए ख्वाहिशों का पता /-
करता जब किसी से तेरे शहर की बात
मिलता हर किसी से बस मुश्किलों का पता /-
शाम हुई तो रहा सुबह होने का इंतज़ार
सुबह हुई ओर मिला कई मीलों का पता /-
अजनबी सा शहर ओर अजनबी से लोग,
खोजना है यहीं दिल के रिश्तों का पता/-
6 टिप्पणियां:
ना फासलों की खबर ना मौसमों का पता ,
बस चल पड़े ढूंढने, हम दोस्तों का पता ....
वाह वाह ...क्या बात है ....बहुत खूब ....!!
अजनबी सा शहर ओर अजनबी से लोग,
खोजना है यहीं दिल के रिश्तों का पता...
मिल जाये तो पता दीजियेगा .....
अजनबी सा शहर ओर अजनबी से लोग,खोजना है यहीं दिल के रिश्तों का पता
"what a wonderfull expressions sure..."
regards
ना फासलों की खबर ना मौसमों का पता ,
बस चल पड़े ढूंढने, हम दोस्तों का पता .
क्या बात है!
शेर बहुत खूब कहा है.
"Wah Wah Bahut Khub"
अजनबी सा शहर ओर अजनबी से लोग,
खोजना है यहीं दिल के रिश्तों का पता/-
वाह ... बहुत खूब
भाई छा गए आप
आभार
जब दोस्तो का पता ढूंढने चल ही पडे हैं तो मौसम और दूरी का ख्याल कैसे आसकता है .जिस दिन से चला हूं मेरी मंजिल में नजर है आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा ।रास्ते में ही नये रास्तों का पता मिलता रहा एक बहुत अच्छा प्रयोग ।शाम होते ही सुबह का इन्तजार शुरु हो जाना स्वाभाविकता भी है और यह भी दर्शित होता है कि रात कितनी कठिनाई से गुजरती है।। एक अच्छी रचना ।
प्रिय बन्धु जो आपने तस्बीर जलाने वाला चित्र लगाया है न जाने क्यों मुझे अच्छा नहीं लगा
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