शनिवार, नवंबर 5

अब किस से करूँ बात...



दौड़ने लगा इश्क की रगों में लहू फिर से,
दिल को लगी जीने की जुत्सजू फिर से/-

कुछ तो बात है तुझमे ऐ जाने बहार ,
बिखरने लगी हवाओं में खुश्बू फिर से /-

अब किस से करूँ बात इस आशनाई की,
दिखता है हर तरफ क्यूँ तू ही तू फिर से /-

साजिश मेरे खिलाफ जहाँ रचती हवाएं हैं,
चिरागे दिल कैसे वंहा मैं जलाऊँ फिर से/-

आँखों से बयाँ कर दिया मंसूबा-ए-दिल,
लबों पे वो अलफ़ाज़ क्यूँ ले आऊं फिर से /-

गिर गिर के संभल जाना है जिंदगी 'अभिन्न'
ठोकर से सीख लेकर क्यूँ न चल पडूँ फिर से /-

1 टिप्पणी:

S.N SHUKLA ने कहा…

अति सुन्दर, सादर.
कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम प्रविष्टि पर भी पधारें.