दौड़ने लगा इश्क की रगों में लहू फिर से,
दिल को लगी जीने की जुत्सजू फिर से/-
कुछ तो बात है तुझमे ऐ जाने बहार ,
बिखरने लगी हवाओं में खुश्बू फिर से /-
अब किस से करूँ बात इस आशनाई की,
दिखता है हर तरफ क्यूँ तू ही तू फिर से /-
साजिश मेरे खिलाफ जहाँ रचती हवाएं हैं,
चिरागे दिल कैसे वंहा मैं जलाऊँ फिर से/-
आँखों से बयाँ कर दिया मंसूबा-ए-दिल,
लबों पे वो अलफ़ाज़ क्यूँ ले आऊं फिर से /-
गिर गिर के संभल जाना है जिंदगी 'अभिन्न'
ठोकर से सीख लेकर क्यूँ न चल पडूँ फिर से /-
दिल को लगी जीने की जुत्सजू फिर से/-
कुछ तो बात है तुझमे ऐ जाने बहार ,
बिखरने लगी हवाओं में खुश्बू फिर से /-
अब किस से करूँ बात इस आशनाई की,
दिखता है हर तरफ क्यूँ तू ही तू फिर से /-
साजिश मेरे खिलाफ जहाँ रचती हवाएं हैं,
चिरागे दिल कैसे वंहा मैं जलाऊँ फिर से/-
आँखों से बयाँ कर दिया मंसूबा-ए-दिल,
लबों पे वो अलफ़ाज़ क्यूँ ले आऊं फिर से /-
गिर गिर के संभल जाना है जिंदगी 'अभिन्न'
ठोकर से सीख लेकर क्यूँ न चल पडूँ फिर से /-
1 टिप्पणी:
अति सुन्दर, सादर.
कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम प्रविष्टि पर भी पधारें.
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