शनिवार, मई 9

फ़ासले

कभी मिलना जरुरी था हमारी ख़ुशी के लिए /-
अब लाजमी हो गए फासले ज़िंदगी के लिए /-

जिस कुदरत ने बनाया था अपने हाथों से उसे  
उसी  कुदरत से दशहत आ रही आदमी के लिए /-

चाँद तारों को पैरों तले अपने  रौंदने वाला   
अंधेरो से लड़ रहा है अदद रौशनी के लिए /- 

तेरे रॉकेट, तेरे एटम, तेरी ईज़ादकारियाँ 
कुछ काम न आएंगे  तेरी बेबसी के लिए /-

कुदरत के  साथ रह कर समझ लो ज़िंदगी
बड़ी  ख्वाहिशे छोड़ डालो सादगी के लिए /-
 
मुसीबतें आएँगी चली जाएँगी  तारीखें गवाह हैं 
इंसानियत ना खोने देना कभी आमदनी के लिए /-
 

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