मुझे सुनहरी धूप देखनी है,
मुझे खुली हवा मे सांस लेनी है
मुझे घास पर पड़ी ओस को छूना है
तितलियों के रंगीन पंखो को निहारना है
मुझे जंगल मे चल चल कर थकना है
पेड़ पे चढ कर फल तोड़ कर खाने हैं
मुझे नंगे पांव नदी पार करनी है
दोपहर की गर्मी मे पसीने से तर होना है
उमड़ते बादलों को देख कर खुश होना है
और मस्त हो बारिशों मे नहाना है
किट पतंगो का संगीत सुनना है
दिन ढलने का इन्तजार करना
फिर अन्धेरे से डरना और
चांद तारों मे किसी को खोजना है
और घर मे मिट्टी के दिये जलाना है
ताकी रोशनी हो सके
और मै सो जाऊं गहरी नींद,
कल सुबह फिर जगने को
क्योकि….
मुझे रोज़ सुनहरी धूप देखनी है,
मुझे रोज़ खुली हवा मे सांस लेनी है॥
जिनकी चकाचौंध ने मुझे,
मेरे गांव से बड़ा दूर किया
बड़े डरपोक, बड़े बेरहम
बड़े मतलबी हैं ये शहर