सोमवार, जनवरी 5

मैं और मेरा लक्ष्य


बड़े विचित्र है हम दोनों

बड़े पवित्र है हम दोनों

मै और मेरा लक्ष्य

किसी त्रासदी के

चरित्र है हम दोनों

मै आस्तिक हूँ

मै प्राकृतिक हूँ

इसीलिए......

एक लक्ष्य चुना मैंने

सत्यम शिवम सुन्दरम

पाना पथ पहचाना मैंने

लिए हुए है आकर्षण

अद्वितीय ,अनुपम उत्कर्षं

कब पाऊं उसे प्रतीक्षा में वो

कैसे पाऊं उसे शंसय में मैं

साहस न उसमे उतरने का

न मुझमे उड़ने की क्षमता

एक आकाश की दूरी मध्य में

एकांत से बड़कर भयावहता

कभी छु लूँगा अपने लक्ष्य को मै

कभी उड़ पाउँगा नील नभ में मैं

कभी उगेंगे पंख मेरे

लहराऊंगा नील नभ में मैं

है यही प्रसन्नता पर्याप्त मन में

मेरा लक्ष्य सदा ही रहेगा मेरा

सुलभ हो या दुर्लभ हो मार्ग

एक लक्ष्य एक मार्ग ही होगा

पहुँच जाऊंगा उसके गुरुत्वकर्ष्ण में

फी चाहे वहीं निस्वास हो जाऊं

पर लग्न बहुत है लक्ष्य की

उस हेतु कुछ भी कर जाऊं

उसे छूने के लिए चाहे तो

हाथ भी अपने बेच डालूँ

उड़ कर जाने के लिए उस तक

पंख भी कटवा कर फ़ेंक डालूँ

मै अर्जुन का तीर.......

वो तैरती मीन का नेत्र है

है यही यही लक्ष्य मेरा

पूरा ब्रह्माण्ड मेरा रणक्षेत्र है

6 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई आपको....

कडुवासच ने कहा…

मेरा लक्ष्य सदा ही रहेगा मेरा
सुलभ हो या दुर्लभ हो मार्ग
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।

Puneet Sahalot ने कहा…

bhaiya aapki rachna bahut bahut achha lagi...
"मै अर्जुन का तीर.......

वो तैरती मीन का नेत्र है

है यही यही लक्ष्य मेरा

पूरा ब्रह्माण्ड मेरा रणक्षेत्र है"

aap mere blog par aye... or mera blog padha.
mujhe is baat ki khushi h ki aapne meri ek line ko pure sher me badal diya. main apka abhari hun.

main khud kuch aage likhna chahta tha par likh nahi paa raha tha isiliye 'arsh' bhaiya se aage kuch likhne ka anurodh kiya. unhone ise age badhaya. main unka bhi aabhari hun.


aapne jo bhaav vyakt kiye hain, usi prakar se me bhi kuchh likhna chahta tha par thodi pareshani ho rahi thi jo aapne hal kar di...

ek baar fir se bahut bahut dhanyawad...
:))

जरुरत थी जब किसी अपने की मै खुदा को ढूंढ़ लाया
बेवफा बेगैरतों की बस्ती से मै एक वफ़ा को ढूंढ़ लाया
तन्हाई न करे महशूस रात भर कहीं अँधेरे उस घर के
मेरे दिल की तरह जलती है जो उस शमा को ढूंढ़ लाया

Puneet Sahalot

BrijmohanShrivastava ने कहा…

लक्ष्य ऐसा ही चुना जाना चाहिए /लक्ष्य सही चुन लिया गया है तो प्रतीक्षा चाहे जितनी करना पड़े संशय की कोई गुंजाइश नहीं; है /सहस तो दिखाना ही पड़ेगा क्योंकि "" जिन खोजा तिन पाईयां गहरे पानी पैंठ ,हों बौरी डूबन डरी रही किनारे बैठ ""

* મારી રચના * ने कहा…

lakshay.. naam hi kafi hai.. usko paane kel iye jeevan jaruri hai aur jene ke liye lakshya bhi jaruri hai..
umda likha hai aapne...

Urmi ने कहा…

बहुत बहुत शुक्रिया आपको मेरा खाना मसाला ब्लॉग अच्छा लगा!
आपने बहुत ही सुंदर लिखा है ये कविता!