रविवार, जनवरी 11

हुआ नही क्यों ?

क्यों नही है प्यार का दस्तूर यहाँ पर
प्यार भी लेकिन कहाँ मंजूर यहाँ पर
शराबों से अफीमों से बहकते है कदम
हुआ नही क्यों प्यार का सरूर यहाँ पर
बमों की बारूदों की क्यों होती हैं खेतियां
उगेंगे कब जाने आम 'ओ अंगूर यहाँ पर






9 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

बहोत बढिया भाव डाले है आपने साहब.ढेरो बधाई कुबूल करें ...
ब्लॉग पे आपका इंतज़ार करूँगा ......

अर्श

* મારી રચના * ने कहा…

bahut khud sureji....

Vinay ने कहा…

छोटी मगर प्रभावशाली रचना है!

---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें

बेनामी ने कहा…

hello bhaiya..
bahut sunder likha hai..
seedhe saral shabdo ka prayog or
prabhavshalee rachna :)

मनीषा ने कहा…

no doubt you have a very good command on poetry n you write in a very brilliant manner besides i must say that what u load on a slide show ,its awesome , those are quite romantic.

BrijmohanShrivastava ने कहा…

प्यार का दस्तूर भी है यहाँ और प्यार मंजूर भी है यहाँ /सुरूर भी है / मगर गुरूर भी है /गुरूर छोड़ कर समर्पण अपनाओ फिर देखो यहाँ क्या नहीं है /

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

wah..wa
achhi bhavabhivyakti.....

"अर्श" ने कहा…

अरे साहब आपके स्नेह और प्यार का तो मैं कायल हो गया ये कर्ज कैसे मैं उतार पाउँगा मुझे तो पता नही ,हाँ मैं बिल्कुल सही हूँ और सब खैरियत है ,पिछले कुछ दिनों से मैं दिल्ली से बाहर था इसलिए कुछ नही लिख पा रहा था ,अब एक कोशिश होगी के एक बढ़िया ग़ज़ल आपको पधायुं.बहोत ही जल्द लिखूंगा ,अब कोशिश भी रही रहेगी के पुरी तरह से बहर में हो ... ताकि गया ग़ज़ल हो .... आपको मैं आज नेवता दिए जाता हूँ ...

आपका
अर्श

Urmi ने कहा…

बहुत बहुत शुक्रिया !
आपने मेरी हर एक शायरी पे इतना सुन्दर कमेन्ट दिया उसके लिये मै आपका आभारी हू !
बहुत ही सुन्दर रचना है! मै आपका ब्लोग रोज़ाना पडती हू !