वो जिन्हें अश्कों की खार नहीं मालूम,
जान क्या देंगे जिन्हें प्यार नहीं मालूम
तिजारत का कायदा भला वो क्या जाने,
जिसे फायदा,सूद और उधार नहीं मालूम
खोल कर रखना घर के दरवाजे खिड़कियाँ
कब आजाये भाइयों के बीच दीवार नहीं मालूम
चला रहे है इस देश को चन्द ऐसे महानुभाव
जिनको दो ओर दो होते हैं ,चार नहीं मालूम
बच कर रहना वतन इन पड़ोसियों के प्यार से
कब कर दें हम पर धोखे से वार नहीं मालूम
क्या लुत्फ़ वो उठाएगा उस मिलन की रात में
महबूब से मिलने का जिसे इंतज़ार नहीं मालूम
11 टिप्पणियां:
क्या लुत्फ़ वो उठाएगा उस मिलन की रात में
महबूब से मिलने का जिसे इंतज़ार नहीं मालूम
Behad sundar rachana!
so simple bt effective and ha after long time
beautiful especially the last two linhes
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ! खास कर ये शेर तो बहुत बढ़िया है क्यूंकि इसमें हकीक़त बयां किया है ....
चला रहे है इस देश को चन्द ऐसे महानुभाव
जिनको दो ओर दो होते हैं ,चार नहीं मालूम
मतला भी बहुत सुन्दर है और मक्ता भी !
kya bat hai bahut sundar likha hai
bahut achche.
chala rahe hai is desh ko kuch aise mahanubhaw jinhe 2 aur 2 hota hai 4 nahi malum .
tab par bhi india ke pas incrising devolepment graph hai.
wah wah..kya likha hai aapne..
bilkul schaaiii
http://liberalflorence.blogspot.com/
http://sparkledaroma.blogspot.com/
प्रशंसनीय ।
This is the irony. power of ruling country is in the hands of few illiterate folk.
do aur do chaar nahi maloom jinhein...
bht sundar gazal likhi hai ...
great :)
bht sundar gazal likhi hai ...
great :)
एक टिप्पणी भेजें