झांक रहा था मै गाड़ी से कब आयेंगे नाना के खेत,
देख के मुझको मेरी तरह खुश हो जायेंगे नाना के खेत /
स्वाभिमानी नाना के जैसे खड़े मिलेंगे गन्ने व पेड़,
ओर नानी के दुलार प्यार सा लहलहाएंगे नाना के खेत/
जहाँ घुमा करते थे नाना जी खुरपी या कुदाल लिए ,
क्या अब भी मेहनत के पसीने से भरमायेंगे नाना के खेत/
वहां मटर के दाने होंगे,या मूली,शलगम गाज़र हो,
खाने को कुछ न कुछ तो मुझे दे जायेंगे नाना के खेत/
सारे मामा थे खेतों में,संग पटवारी ओर रस्सी के,
शायद चार हिस्सों में अब बंट जायेंगे नाना के खेत/
6 टिप्पणियां:
bachpan ki yaade hoti hi kuch esi h.......
ab na to vase khet rhe na hi log.......per aj b train se bus se ya car se gujrte hue khet peli chadar odhe dikhte h to kuch yade to taaza ho ati h
bachpan ki yaade hoti hi kuch esi h.......
ab na to vase khet rhe na hi log.......per aj b train se bus se ya car se gujrte hue khet peli chadar odhe dikhte h to kuch yade to taaza ho ati h
Aapki rachna mein mitti ki bhini sugand hai,kuch yaadein hai, kuch dard hai, kuch sachai hai ... sankshep mein kahu to katu satya hai ... sunder rachna ...badhai
आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
सराहनीय लेखन........
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चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपको, सदा ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
सुन्दर रचना...!
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