घर से निकलो ,क्या रखा है घर में ,
मंजिले उनकी, जो निकले सफ़र में /
खास हो गई है अब हैसियत मेरी,
कुछ खासियत है, उसकी नज़र में/-
सीप में गिर के वो बूँद मोती हुई,
क्या होती जो होती अपने घर में /-
अंधेरों को वही चीर के निकलते है,
रखते है जो आग अपने जिगर में /-
एहतियात रखना अब दोस्तों के साथ ,
अफ़वाह सी फ़ैल रही है पूरे शहर में /-
हादसे बिकते है अब लोगों की तरह
सच कहाँ दिखता है किसी भी खबर मे /-
........( सुरेन्द्र 'अभिन्न'
मंजिले उनकी, जो निकले सफ़र में /
खास हो गई है अब हैसियत मेरी,
कुछ खासियत है, उसकी नज़र में/-
सीप में गिर के वो बूँद मोती हुई,
क्या होती जो होती अपने घर में /-
अंधेरों को वही चीर के निकलते है,
रखते है जो आग अपने जिगर में /-
एहतियात रखना अब दोस्तों के साथ ,
अफ़वाह सी फ़ैल रही है पूरे शहर में /-
हादसे बिकते है अब लोगों की तरह
सच कहाँ दिखता है किसी भी खबर मे /-
........( सुरेन्द्र 'अभिन्न'
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