सोमवार, अक्तूबर 7

घर से निकलो ,क्या रखा है घर में ,
मंजिले उनकी, जो निकले सफ़र में /

खास हो गई है अब हैसियत मेरी, 
कुछ खासियत है, उसकी नज़र में/-

सीप में गिर के वो बूँद मोती हुई,
क्या होती जो होती अपने घर में /-

अंधेरों को वही चीर के निकलते है,
रखते है जो आग अपने जिगर में /-

एहतियात रखना अब दोस्तों के साथ ,
अफ़वाह सी फ़ैल रही है पूरे शहर में /-

हादसे बिकते है अब लोगों की तरह
सच कहाँ दिखता है किसी भी खबर मे /-

........( सुरेन्द्र 'अभिन्न' 

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