
शनिवार, जून 28
कोई न जान पाया



" कोई न जान पाया "
ख़ुद को जला के चिराग ने रोशन किया जहाँ ,
ख़ुद को जला के चिराग ने रोशन किया जहाँ ,
जलने का दर्द क्या है कोई न जान पाया..
दुनिया जहाँ सब सामने पर गम है अपना आप,
खोने का दर्द क्या है कोई न जान पाया...
इंसान मर गया है ,एहसास मर गया जो,
मरने का दर्द क्या है कोई न जान पाया....
किस किस को खुश करोगे दुनिया में अभिन्न,
शिकवों का दर्द काया है कोई न जान पाया...
लो आ गई है आप के भी लबों पे ये हँसी,
हसने का दर्द क्या है कोई न जान पाया..
कब से खड़ा हूँ रह में नज़रे बिछाए मैं,
इंतज़ार का दर्द क्या है कोई न जान पाया ..

शुक्रवार, जून 27
शमां सी तू
गुरुवार, जून 26
जीवन का सर्वोच्च क्षण



जीवन का सर्वोच्च क्षण
एक मौन संध्या का आगमन
मेरा स्वयं से साक्षात्कार
था जीवन में पहली बार
हृदय में उठता प्रश्न विशेष प्रशांत
देखा जब से जीवन साक्षात्
मेरा इससे कुछ है सम्बन्ध
स्पष्ट दीखता है मेरा प्रतिबिम्ब
मै,वो और एक तीसरा क्षण
और हम पर वो सांध्य अर्पण
मुझको जो लगा वो कहना था
मुझे भी जीवित रहना था
मै बिता क्षण तू शेष है
तेरा महत्व अभी विशेष है
इन साँसों को चलते रहने दो
मेरी जीवनधारा बहने दो
मै भूत भविष्य तू मेरा,
मै काव्य विषय तू मेरा
साक्षी क्षण ये तृतीय , विधान है
दोनों के मध्य ये कड़ी वर्तमान है
तीन काल एकत्र हो सारे
और ऐसे सम्बन्ध के बारे
भूत भविष्य दोनों मौन है
फिर रोने वाले तू कौन है?
प्रश्न अतीत ने उठाया ऐसे
उत्तर वर्तमान ने समझाया ऐसे
ध्रुव,धाराएँ चाहे मिलते रहें
ये मिलन असंभव है मेरा मन कहे
.....अभिन्न
एक मौन संध्या का आगमन
मेरा स्वयं से साक्षात्कार
था जीवन में पहली बार
हृदय में उठता प्रश्न विशेष प्रशांत
देखा जब से जीवन साक्षात्
मेरा इससे कुछ है सम्बन्ध
स्पष्ट दीखता है मेरा प्रतिबिम्ब
मै,वो और एक तीसरा क्षण
और हम पर वो सांध्य अर्पण
मुझको जो लगा वो कहना था
मुझे भी जीवित रहना था
मै बिता क्षण तू शेष है
तेरा महत्व अभी विशेष है
इन साँसों को चलते रहने दो
मेरी जीवनधारा बहने दो
मै भूत भविष्य तू मेरा,
मै काव्य विषय तू मेरा
साक्षी क्षण ये तृतीय , विधान है
दोनों के मध्य ये कड़ी वर्तमान है
तीन काल एकत्र हो सारे
और ऐसे सम्बन्ध के बारे
भूत भविष्य दोनों मौन है
फिर रोने वाले तू कौन है?
प्रश्न अतीत ने उठाया ऐसे
उत्तर वर्तमान ने समझाया ऐसे
ध्रुव,धाराएँ चाहे मिलते रहें
ये मिलन असंभव है मेरा मन कहे
.....अभिन्न
बुधवार, जून 25
सोमवार, जून 23
"ग़ज़ल "



"ग़ज़ल"
कोई हसीं ग़ज़ल मुस्कुराकर निकली किताब से,
मेरे सामने खड़ी मेरी दिल की मेहमान बनकर!
आप जब यूँ लबों पर मुस्कराहट उतार लाती हो,
शर्मिले से फूल रह जाते है बेजुबान बन कर!
सीख लेते काश वो खुश रहने की अदा आपसे,
फूलों को निहार लेते हम कभी मेहरबान बनकर!
ये शरारत जो सर पे बैठी है जुल्फ हो कर,
इसे रोक लो ये उड़ती है तूफ़ान बनकर!
आँख को क्या कहूं मै आँख के सिवा,
कई सागर बसे इनमे अश्कों का सामान बनकर!
रविवार, जून 22
शनिवार, जून 21
"खुशी"
मंगलवार, जून 17
सोमवार, जून 16
रविवार, जून 15
शनिवार, जून 14
वो चला आएगा

चिर कर व्योम को...
प्रकाश पुंज
आलोकित करने
जीवन मेरा ,
चला आएगा
पथ को दर्शाने हेतु
वो पथप्रदर्शक बन
संग मेरे
चला आएगा
ईश्वर सम रूप है
जो जीवन पर
आधिपात्य कर
मुझे आलोकित करने,
प्रकाश पुंज
आलोकित करने
जीवन मेरा ,
चला आएगा
पथ को दर्शाने हेतु
वो पथप्रदर्शक बन
संग मेरे
चला आएगा
ईश्वर सम रूप है
जो जीवन पर
आधिपात्य कर
मुझे आलोकित करने,
चला आएगा............
http://swargvibha.freezoka.com/kavita/all%20kavita/Surendra%20kumar%20abhinn/mujhe%20aalokit%20karne.htm (www.swargvibha.tk)
शुक्रवार, जून 13

इंसान कम बस्ती मे भगवान बहुत थे
देखा बार बार पुरा शहर घूम के
घर कम मिले लेकिन मकां बहुत थे
हो गया दिखावा हर एक बात का
चोट कम चोट के निशान बहुत थे
खोल कर जुबां दर्द भी बता न पाये
उस भीड़ मे मेरे जैसे बेज़ुबान बहुत थे
भूखे रहे थे बच्चे उस घर के कई रोज
उस घर मे आए उनके मेहमान बहुत थे
"दीवानापन"

"दीवानापन"
ये तेरा दीवानापन हमे भी एक दिन दीवाना कर देगा,
हर एक छोटी सी बात का , एक अफसाना कर देगा.
करता है वो कितने वादे आने के और मिल जाने के ,
दिल देगा आवाज उसे जब वो एक बहाना कर देगा.
खिलते हैं उस बाग़ मे कितने फूल चमेली चंपा के ,
निर्मोही है वो भंवरा एक दिन मुझे बेगाना कर देगा.
अच्छा है ये जूनून जो खेती करता है मुस्कानों की,
देखना एक दिन दुनिया मे खुशीओं का खजाना कर देगा.
मुल्कों की होती है सरहद -"सीमा " न कोई ख्यालों की,
लिखेगा जब जो भी " अभिन्न"-वो दिलों मे हंगामा कर देगा
http://swargvibha.freezoka.com/kavita/all%20kavita/Surendra%20kumar%20abhinn/deewanapan.htm (www.swargvibha.tk)
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