शुक्रवार, जून 27

मिलना






कभी खवाबों में आकर मिलना ,
कभी ख्यालों में छाकर मिलना,

हमें रुला भी देगा अब यूँ
तेरा आंसू बहा कर मिलना,

ज़माने को दे गया अंदेशा क्यों,
चोरी -चुपके से तेरा बुलाकर मिलना

प्यास से पानीयों का रिश्ता हो जैसे,
तपाक से बांहे फैला कर मिलना।

कभी आवाज़ कभी लफ्ज़ के जादू चले,
कभी रात को कोई ग़ज़ल सुनाकर मिलना

1 टिप्पणी:

seema gupta ने कहा…

कभी आवाज़ कभी लफ्ज़ के जादू चले,
कभी रात को कोई ग़ज़ल सुनाकर मिलना

"wah wah , behtrin, wonderful.........."

Regards