शुक्रवार, फ़रवरी 27

खामोश हवा

बड़े बेताब है अब्र ,बड़ी खामोश हवा है
कोई बताये, भला इन्हे हुआ क्या है ?
सब्जोगुल का चेहरा मुरझाया सा लगा ,
किसी काँटों भरे हाथ ने छुआ क्या है ?
धुआं नही तो, फिर ये गुबार सा कैसा ?
उस और जो उठा , बता वो उठा क्या है ?
मुक़र्रर सजाये मौत है रकीबी के लिए,
बता तेरे मुल्क में ,इश्क की सज़ा क्या है ?
झुका दिया सर ,हर दरो दीवार पे हमने
न देखा की राम क्या-और खुदा क्या है ?

16 टिप्‍पणियां:

kabira ने कहा…

अभिन्न जी बहुत दिनों बाद इधर आना हुआ तो देखा की बहुत ही शसक्त साहित्य रचा जा रहा है आपको बहुत बहुत बधाई
पूरी की पूरी गजल कमाल की बन पड़ी है और इन शेरों ने तो गज़ब ही ढा दिया

धुआं नहीं तो, फिर ये गुबार सा कैसा ?
उस और जो उठा , बता वो उठा क्या है ?
मुक़र्रर सजाये मौत है रकीबी के लिए,
बता तेरे मुल्क में ,इश्क की सज़ा क्या है ?

Science Bloggers Association ने कहा…

बड़े बेताब है अब्र ,बड़ी खामोश हवा है
कोई बताये, भला इन्हे हुआ क्या है ?

मुक़र्रर सजाये मौत है रकीबी के लिए,
बता तेरे मुल्क में ,इश्क की सज़ा क्या है ?

झुका दिया सर ,हर दरो दीवार पे हमने
न देखा की राम क्या-और खुदा क्या है ?

बहुत प्यारे शेर कहें भाई, बधाई।

Poonam Agrawal ने कहा…

Na dekha ki Ram kya-aur khuda kya hai.....behad khoobsurt

Abhinnji aapki kalpana kamal ki hai....Badhai swikariyega

* મારી રચના * ने कहा…

n dekha ki Ram kak huda kya hai..!!!

^ Wel said.. sureji, lambe arse ke baad kuch accha padhne ko mila.

daanish ने कहा…

झुका दिया सर हर दरो-दिवार पे हमने
न देखा कि राम क्या और खुदा क्या है ...

वाह ! ऐसे नेक और पावन ख्यालात के लिए
अभिवादन स्वीकार करें ......
और इस अछि रचना के लिए बधाई . . . . . .
---मुफलिस---

मनीषा ने कहा…

sir
in each verses you hav created a world of imagination which blows the emotions. i wud not say it a marvellous or brilliant composition but it is some thing very natural and lovely.

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

pahli baar aayaa aour maza aagaya..
achchi rachna he,,,ab aata rahunga

seema gupta ने कहा…

मुक़र्रर सजाये मौत है रकीबी के लिए,
बता तेरे मुल्क में ,इश्क की सज़ा क्या है ?

"STRANGE...???"

rEGARDS

sandhyagupta ने कहा…

Har pankti asar chodti hai. Badhai.

कडुवासच ने कहा…

झुका दिया सर ,हर दरो दीवार पे हमने
न देखा की राम क्या-और खुदा क्या है ?
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!!!!

ilesh ने कहा…

बेहतरीन कल्पना सुरेंदर जी....सुंदर रचना

kumar Dheeraj ने कहा…

बहुत प्रभावी लिखा है आपने । पूरी रचना दमदार है । बार-बार पढ़ा हू हर बार एक नया अथॆ मिला है खासकर ये लाइने बहुत बढ़िया लगा
बड़े बेताब है अब्र ,बड़ी खामोश हवा है
कोई बताये, भला इन्हे हुआ क्या है ?
शुक्रिया

बेनामी ने कहा…

ye rachna to sach me "abhinnkalpna" hai...
:)

purnima ने कहा…

aapne mera blog ki profile visit ki.........uske liya dhanyavaad...........
lakin aap ab use path kar jarur bataye ki aapko kaisa laga.
muje acha laga ............lakin agar aap blog bhi padaenge to muje kushi hogi.......
अभिन्न ji,

purnima ने कहा…

झुका दिया सर हर दरो-दिवार पे हमने
न देखा कि राम क्या और खुदा क्या है ...

bhut kubh.............

Urmi ने कहा…

बेहद खुबसूरत लिखा है आपने ! ऐसे ही लिखते रहिये !