शुक्रवार, सितंबर 11

बहती हो तुम

"बहती हो तुम"

अंधेरों में लिपटी रौशनी हो तुम ,
मुझे लगता है की जिंदगी हो तुम.

जमुना सा वेग तुममे ,है गंगा सी पावनता ,
फिर आंसुओं सी क्यो सदा बहती हो तुम.

बसा सकती हो जब खुशी की वादियाँ,
क्यों बस्तियों में ग़मों की रहती हो तुम.

मुरझा जाती है मेरी दुनिया तेरे सिसकने भर से,
महक जाती है कायनात जब चहकती हो तुम.

जाती हो कहां ,अब तक न जान पाये ,
कभी जमीन तो कभी आसमान से उतरती हो तुम



2 टिप्‍पणियां:

मनीषा ने कहा…

itne dino baad apne likha
zindagi hamesha se se kuch esi hi rahi hai , sab kuch hai per kuch kami si hai.
apko vaapas dekh ker bahut khushi hui , aap ese hi likhte rahe yehi dua hai .

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

मुरझा जाती है मेरी दुनिया तेरे सिसकने भर से,
महक जाती है कायनात जब चहकती हो तुम. aaj ki apki nazam khushnuma c lagi.....pyaar se bhari lagi...yahi chahat hia kisi ke murjhane se duniya udaas ho jati hai...