


"दिल"
टूट रही है साँसे ,बैठा जा रहा है दिल,
जाने किस गुनाह की सजा पा रहा है दिल,
चुभता था कभी नश्तर ,ये सीने में लेकिन ,
आज किसी फूल सा मुरझा रहा है दिल .
कम पड़ रहा था घर उस मेहमान के लिए ,
गम जिसके लाखों अब उठा रहा है दिल...
नस नस में लहू बनके बस गई थी तुम,
आंसू लहू के बेवफा बहा रहा है दिल .
शायद तेरे कहने में ही कोई कमी 'अभिन्न'
दर्द कुछ है , बात कुछ बना रहा है दिल