शुक्रवार, जुलाई 11



"साथ देदे"

मुझको भी दोस्ती का कोई इनाम देदे
हंस के ले लूँगा गम तमाम देदे

रह न जाए मेरी आँख का कोना सुखा
झडी न सही चाँद लम्हों की बरसात देदे

देखता रहू तुम्हे और इस की तड़पन को
कोई तो सिसकती बिलखती मुझे एक रात देदे

देखो न मै कैसे रो रहा हू फुट कर
रोक ले या मेरा साथ देदे

1 टिप्पणी:

seema gupta ने कहा…

रह न जाए मेरी आँख का कोना सुखा
झडी न सही चाँद लम्हों की बरसात देदे
" wonderful presentation"